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मंगलवार, 10 सितंबर 2019

🌹सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा🌷 सौ भाग

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🌹सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा🌷
     सौ  भाग में
Hundred in partition
अपने गुरु का ध्यान धर, गिरिजा पुत्र गणेश मनाय,,
अपनी प्रेम कहानी लिखूँ, सरस्वती माँ को श्री नवाय।
श्री श्रीयल माँ की श्री नवा, कर श्री जाहर वीर का ध्यान,,
'सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा,लिखे सर्वेन्द्र सिंह चौहान।
9⃣9⃣2⃣7⃣0⃣9⃣9⃣1⃣3⃣6⃣
 👉🏻मेरी आप बीती👈🏻
🌹अश्के💑इश्क🌷
        भाग-1👇🏻
भारत देश के एक परिवार की,यह सच्ची कहानी है भाई,,
जिस पे बीती है यारो यह उसी आशिक की जुवानी है भाई।
उस आशिक के दिल से ये दास्तान निकली है,,
सुनाने हेतु सभी को सर्वेन्द्र के लवों से ये तान निकली है।
सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा है,नेहा और सर्वेन्द्र के प्यार की,,
सर्वेन्द्र ने खुद अपनी लेखनी से,यह सच्ची गाथा है तैयार की।
भारत देश के उत्तरप्रदेश में,एक जिला मुरादाबाद आता है भाई,,
दो दिलों की एक सच्ची दास्तान की, ये याद दिलाता है भाई।
है यह कहानी मुरादाबाद के,कटघर थाने की यारो,,
पीतल नगरी बस स्टैंड से एक डगर है गोविंदनगर जाने की यारो।
है मोo का नo-9927099136,गली नo पाँच है भाई,,
दो दिलों की आश्की का,यह किस्सा साँच है भाई।
'गाथा,रूप दे रहा हूँ मैं, क्योकि घर-घर पहुँचानी है भाई।।
भारत देश के .....

         भाग-2👇🏻
जिला मुरादाबाद थाना कटघर मोहल्ला गोविंदनगर है,,
काली माता मन्दिर के पास में,श्री देवेन्द्र सिंह जी का घर है।
हैं सर्वेन्द्र सिंह के पिता जी वो,अच्छी उनकी हस्ती है भाई,,
एक डोर में हैं सब बाँधे हुए,मस्त सी उनकी मस्ती है भाई।
राजा सा बन कर रहते हैं,उनकी ऐसी शान है यारो,,
देवेन्द्र सिंह ने जो कह दिया किया,उनकी ऐसी जुवान है यरो।
पिता की इज्जत अच्छी है,सर्वेन्द्र ने भी व्यवहार कमाया है,,
आज अपने ही मोहल्ले की,लड़की पे,सर्वेन्द्र दिल हार आया है।
'ठाoसर्वेन्द्र सिंह चौहान" नाम व् दादा ठाकुर भी कहते हैं,,
किसी से डरा नहीं आज तक वो,इसीलिए रणबाँकुर भी कहते हैं।
नेहा नाम की लड़की को,सर्वेन्द्र ने पाने की ठानी है भाई।।
भारत देश के.....

      भाग - 3👇🏻
सब कुछ लुटा दूँ उस पे,सर्वेन्द्र का यह विचार था,,
पागल था इश्क में वो,अँधा उसका प्यार था।
सूरत नेहा की रहती थी,सर्वेन्द्र के दिमाग में,,
कैसे चुराऊँ दिल नेहा का,रहता था इसी फ़िराक में।
सोंचता था कैसे करूँ मैं, इजहार अपने प्यार का,,
लब्ज नहीं आते थे लवों पर,कर दीदार अपने यार का ।
आँखों उतारी सूरत नेहा की,दिल में उसका नाम था,,
एक झलक देखने को उसकी,गली जाता सुबह-शाम थाम था।
दिल की बात लवों से कहने को,जुबान इन्कार करती थी,,
पता नही था किसी को ये,कि नेहा भी सर्वेन्द्र से प्यार करती थी।
प्रेम सिंह की बेटी नेहा भी,"सर्वेन्द्र'की दीवानी है भाई।।
भारत देश के.....

     भाग - 4👇🏻

चाँहती हूँ मैं तुमको नेहा भी,सर्वेन्द्र से कह न पाती थी,,
बिन देखे सर्वेन्द्र की सूरत नेहा एक पल भी रह न पाती थी।
एकदूजे को चाँहते थे दोनों,पर इजहार कर नहीं पाते थे,,
कहने को तो वहुत कुछ थे दोनों,पर इकरार कर नहीं पाते थे।
हिम्मत बाँधके नेहा ने एक दिन,सर्वेन्द्र से इजहार किया,,
सर्वेन्द्र के कहने से पहले ही,नेहा ने प्यार का इकरार किया।
पर्ची लिख नेहा ने एक बच्चे से भेजी खबर,,
उस पर्ची पर लिखा था,please give me your mobile number.।
अपने घर के दरबाजे से,वो अन्दर मुस्कुरा के चली गई,,
दिल तो दे रक्खा था पहले ही,अब जान चुरा के चली गई।
पढ़ कर पर्ची नेहा की,सर्वेन्द्र की हुई शाम सुहानी है।।
भारत देश के  .....

    भाग - 5 👇🏻

वार-वार पर्ची को पढ़ कर,मन ही मन मुस्कुराता था चूम-चूमकर,,
दूँ कैसे पर्ची का जवाब नेहा को,इसी सोँच में रात गुजारी घूम-घूमकर।
सब से सुन्दर बो सुबह थी उसकी,मन में जागी एक आशा थी,,
नेहा को अपना बनाने की,सर्वेन्द्र की पूरी हुई अभिलाषा थी।
अब सर्वेन्द्र ने भी नेहा को,नम्बर देने का मन बना डाला,,
जा नेहा के घर के गेट पे,दे नम्बर अपना प्यार जना डाला।
नम्बर मिल गया नेहा को,अब सर्वेन्द्र से बात करने का विचार किया,,
अपने पिता जी की कमीज की जेब से,नेहा ने फोन निकाल लिया।
नेहा ने पहली कॉल की सर्वेन्द्र को,अपने पिता प्रेम सिंह के नम्बर से,,
कहीं पता न चल जाए किसी को,सर्वेन्द्र निकल गया बाहर घर से।
एक मिनट बात हुई दोनों की,फिर नेहा ने फोन काट दिया,,
फोन न कर दे सर्वेन्द्र कहीँ, कर मैसेज नेहा ने नाट दिया।
प्रेम सिंह के फोन के जरिए,शुरू हुई इश्क की रवानी है भाई।।
भारत देश के .....

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(पिता) क्या निभाया है हमने फर्ज अपने आप का, क्या चुकाया है हमने कर्ज अपने बाप का, सम्भाला जिसने हमको शौक सारे छोड़ ...
सर्वेन्द्र सिंह
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लेखक: Sarvendra Singh फ़रवरी 28, 2018. https://youtu.be/O2ikihCqW3c. और पढ़ें · Blogger द्वारा संचालित · Michael Elkan के थीम चित्र.
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🌹सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा🌷

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अपने गुरु का ध्यान धर, गिरिजा पुत्र गणेश मनाय,,
अपनी प्रेम कहानी लिखूँ, सरस्वती माँ को श्री नवाय।
श्री श्रीयल माँ की श्री नवा, कर श्री जाहर वीर का ध्यान,,
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        भाग-1👇🏻
भारत देश के एक परिवार की,यह सच्ची कहानी है भाई,,
जिस पे बीती है यारो यह उसी आशिक की जुवानी है भाई।
उस आशिक के दिल से ये दास्तान निकली है,,
सुनाने हेतु सभी को सर्वेन्द्र के लवों से ये तान निकली है।
सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा है,नेहा और सर्वेन्द्र के प्यार की,,
सर्वेन्द्र ने खुद अपनी लेखनी से,यह सच्ची गाथा है तैयार की।
भारत देश के उत्तरप्रदेश में,एक जिला मुरादाबाद आता है भाई,,
दो दिलों की एक सच्ची दास्तान की, ये याद दिलाता है भाई।
है यह कहानी मुरादाबाद के,कटघर थाने की यारो,,
पीतल नगरी बस स्टैंड से एक डगर है गोविंदनगर जाने की यारो।
है मोo का नo-9927099136,गली नo पाँच है भाई,,
दो दिलों की आश्की का,यह किस्सा साँच है भाई।
'गाथा,रूप दे रहा हूँ मैं, क्योकि घर-घर पहुँचानी है भाई।।
भारत देश के .....

         भाग-2👇🏻
जिला मुरादाबाद थाना कटघर मोहल्ला गोविंदनगर है,,
काली माता मन्दिर के पास में,श्री देवेन्द्र सिंह जी का घर है।
हैं सर्वेन्द्र सिंह के पिता जी वो,अच्छी उनकी हस्ती है भाई,,
एक डोर में हैं सब बाँधे हुए,मस्त सी उनकी मस्ती है भाई।
राजा सा बन कर रहते हैं,उनकी ऐसी शान है यारो,,
देवेन्द्र सिंह ने जो कह दिया किया,उनकी ऐसी जुवान है यरो।
पिता की इज्जत अच्छी है,सर्वेन्द्र ने भी व्यवहार कमाया है,,
आज अपने ही मोहल्ले की,लड़की पे,सर्वेन्द्र दिल हार आया है।
'ठाoसर्वेन्द्र सिंह चौहान" नाम व् दादा ठाकुर भी कहते हैं,,
किसी से डरा नहीं आज तक वो,इसीलिए रणबाँकुर भी कहते हैं।
नेहा नाम की लड़की को,सर्वेन्द्र ने पाने की ठानी है भाई।।
भारत देश के.....

      भाग - 3👇🏻
सब कुछ लुटा दूँ उस पे,सर्वेन्द्र का यह विचार था,,
पागल था इश्क में वो,अँधा उसका प्यार था।
सूरत नेहा की रहती थी,सर्वेन्द्र के दिमाग में,,
कैसे चुराऊँ दिल नेहा का,रहता था इसी फ़िराक में।
सोंचता था कैसे करूँ मैं, इजहार अपने प्यार का,,
लब्ज नहीं आते थे लवों पर,कर दीदार अपने यार का ।
आँखों उतारी सूरत नेहा की,दिल में उसका नाम था,,
एक झलक देखने को उसकी,गली जाता सुबह-शाम थाम था।
दिल की बात लवों से कहने को,जुबान इन्कार करती थी,,
पता नही था किसी को ये,कि नेहा भी सर्वेन्द्र से प्यार करती थी।
प्रेम सिंह की बेटी नेहा भी,"सर्वेन्द्र'की दीवानी है भाई।।
भारत देश के.....

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चाँहती हूँ मैं तुमको नेहा भी,सर्वेन्द्र से कह न पाती थी,,
बिन देखे सर्वेन्द्र की सूरत नेहा एक पल भी रह न पाती थी।
एकदूजे को चाँहते थे दोनों,पर इजहार कर नहीं पाते थे,,
कहने को तो वहुत कुछ थे दोनों,पर इकरार कर नहीं पाते थे।
हिम्मत बाँधके नेहा ने एक दिन,सर्वेन्द्र से इजहार किया,,
सर्वेन्द्र के कहने से पहले ही,नेहा ने प्यार का इकरार किया।
पर्ची लिख नेहा ने एक बच्चे से भेजी खबर,,
उस पर्ची पर लिखा था,please give me your mobile number.।
अपने घर के दरबाजे से,वो अन्दर मुस्कुरा के चली गई,,
दिल तो दे रक्खा था पहले ही,अब जान चुरा के चली गई।
पढ़ कर पर्ची नेहा की,सर्वेन्द्र की हुई शाम सुहानी है।।
भारत देश के  .....

    भाग - 5 👇🏻

वार-वार पर्ची को पढ़ कर,मन ही मन मुस्कुराता था चूम-चूमकर,,
दूँ कैसे पर्ची का जवाब नेहा को,इसी सोँच में रात गुजारी घूम-घूमकर।
सब से सुन्दर बो सुबह थी उसकी,मन में जागी एक आशा थी,,
नेहा को अपना बनाने की,सर्वेन्द्र की पूरी हुई अभिलाषा थी।
अब सर्वेन्द्र ने भी नेहा को,नम्बर देने का मन बना डाला,,
जा नेहा के घर के गेट पे,दे नम्बर अपना प्यार जना डाला।
नम्बर मिल गया नेहा को,अब सर्वेन्द्र से बात करने का विचार किया,,
अपने पिता जी की कमीज की जेब से,नेहा ने फोन निकाल लिया।
नेहा ने पहली कॉल की सर्वेन्द्र को,अपने पिता प्रेम सिंह के नम्बर से,,
कहीं पता न चल जाए किसी को,सर्वेन्द्र निकल गया बाहर घर से।
एक मिनट बात हुई दोनों की,फिर नेहा ने फोन काट दिया,,
फोन न कर दे सर्वेन्द्र कहीँ, कर मैसेज नेहा ने नाट दिया।
प्रेम सिंह के फोन के जरिए,शुरू हुई इश्क की रवानी है भाई।।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019



दूर ही से ज़रा मुस्कुरा दीजिये,
बीती बातों को दिल से भुला दीजिये।

राह मुश्किल है लेकिन असंभव नही,
हौसले से कदम तो बढ़ा दीजिये।

कब तलक रूठने की कसम खाई है,
कोई मुद्दत भी हमको बता दीजिये।

दुश्मनी का सबक बन्द करके यहाँ,
प्यार का पाठ सबको सिखा दीजिये।

सिर्फ अपनो की ख़ातिर गरजना ही क्या,
सबकी खातिर बरस कर दिखा दीजिये।

साथ चलना है दिल से चलो उम्र भर,
एक दस्तूर ऐसा बना दीजिये।


गुरुवार, 25 जुलाई 2019

(पिता) क्या हमने निभाया फर्ज अपने आप का, क्या चुकाया है

सभी को पितृ दिवस की बधाइयाँ, पिता का हृदय विशाल है, आसमां का विस्तार है। पिता के पास है सुरक्षा की गैर-जरूरी शर्तें, पिता हर मुश्किल में देते हैं सहयोग। पिता ईश्वर से पहले साथ देता है, पिता हर दुःख को मोड़ देता है। पिता की गोद में मिलता है असर ऐसा, जो लगे सुख के समंदर के रूप में। पिता की क्रोध में भी प्रेम का पुट होता है, पिता भी छिप कर छिप कर हमारे लिए रोता है। जो संन्यास के वास्तु त्याग दे अपना हर सुख, पालन दे खुद को भी पिता बोता है। पितृ दिवस पर हर पिता को नमन। नृपेंद्र शर्मा "सागर"  प्रिया शर्मा: कमी कोई नहीं तेरे में बहना नजर। बिना लक्ष्य पाए क्यूं छोड़ दें अपना डगर। नदी के मार्ग में भी आओ लाख विपदा। हो मजबूत तो पायो अपनी मंजिल मगर। [7:09 PM, 6/16/2019] प्रिया शर्मा: पकड़ इंगुली सिखाती है जो पिता ने ही हम घूमते हैं। अपाला, पदमा, लक्ष्मी सिखाती है हमें ढकना। पिता के वायदो को झूठा कभी ना हम कर सकते हैं। सपनो को घनीभूत होते हैं हम बढ़ते हैं। [7:42 PM, 6/16/2019] सर्वेन्द्र सिंह: (पिता) क्या हमने निभाया फर्ज अपने आप का, क्या चुकाया है हमने कर्ज अपने बाप का, सम्भाला जिसने हमको शौक सारे छोड़ के, सपने देखे मेरे खुद के सपने तोड़ के, लाभ हम जो जीता दर्द संकट के ताप का। मां ने हमें जन्म दिया बोलना सिखाया, पिता ने हमें जीवन दिया, जंग में खुद को तोलना सिखाया, मतलब सिखाया हमें सेवा और श्राप का। लेखक- सर्वेन्द्र सिंह 9927099136 [9:19 PM, 6/16/2019] मोनिका: प्रभु अद्भुत तेरे संसार की माया। बदन के लिए भी तनी काया। जिस्म का सख्त ,बड़ा खुश मिज़ाजी था जो स्नेह ,ममता भरी उस वृक्ष की देखी छाया मोनिका मासूम [9:24 PM, 6/16/2019] Monika: जिस्म लोहा दिल यह पत्थर की बात बताता है पिघले जज्बात को लावा साजत है सख्त बर्फीले हिमालय साहो गया हूं मैं जब बच्चों ने मेरा नाम पिता रखा है मोनिका मासूम [9:48 PM, 6/16/2019] मोनिका: पिता है शक्ति तन मन की, प्रथम अभिव्यक्त जीवन की पिता है छत की मिट्टी, जो थामे घर को है शत्रु ही द्वार पिता प्रहरी सतर्कता रहता है चौपहरी पिता दीवारो दर है छत, ज़रा स्वभाव का सख्त पिता पालन है पालन है, पिता से घर में भोजन है पिता से घर में अनुशासन, मांग जिसका प्रशासन पिता संसार बच्चों का, स्वीकार्य आधार सपनों का पिता पूजा की थाली है, पिता होली दीवाली है पिता अमृत की धारा है, ज़रा सा स्वाद खारा है पिता हिमालय की, ये चौखट है शिवालय की हरि ब्रह्मा या शिव होई, पिता सम पूजनिय कोई हुआ है न कभी होई, हुआ है न कोई होई। ... मोनिका "मासूम" [4:56 AM, 6/17/2019] प्रिया शर्मा: पकड़ उँगुली सिखाता है जो पिता ने ही हम चलते हैं। अपाला,पदमा,लक्ष्मी सिखाती है हमें रजतना। पिता के वायदो को कभी नहू झुठला हम सकते हैं। सपनो को पंजर आ गए हम बढ़ते हैं। [9:46 AM, 6/17/2019] मोनिका: पिता ने ही हमें उंगली पकड़कर बोलना सिखाया है। अपाला पद्मा लक्ष्मी रूप में ढालना सिखाती है। पिता की हुई शिक्षा को हम झुठला नहीं सकते। पिता ने ही तो मंजिल की ओर देखना सिखाया है। [7:34 PM, 6/18/2019] निरपेश: दुर्घटना में भी विवाद ललचाते हैं कभी काला भूरा कभी कभी भूरा रंग दिखा रहा है, उन्हें देख के हमारे मन हर्षाते हैं लेकिन गीत भी वेवफा प्रेमिका मि तरह पकोड़ी हमसे बनबाकर कहीं और हिट हो जाते हैं हैं।। [12:35 पूर्वाह्न, 6/19/2019] सर्वेन्द्र सिंह: जून जा रहा है, मानसून आ रहा है। सताया बहुत गर्मी ने, अब सोचा आ रहा है। हमें गर्मी ने बहुत सताया है, बदला लेने वाले बादल आए हैं। धूप ने घूँघट ओड़ा है गर्मी में, क्लाउडया भी वेशर्मी में है। क्योंकि बरसात का स्मरण आ रहा है। लेखक- सर्वेन्द्र सिंह 9927090136 [8:40 AM, 6/19/2019] सर्वेन्द्र सिंह: मेरे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए इस लिंक को फॉलो करें: https://chat.whatsapp.com/DIknCDYJfopLqiwCBRaH0y [6:36 PM, 6/19/ 2019] निर्पेश: मय्यत पे मेरी यारों बरसात हो रही थी, लोगों ने देखा तो बेवफा वो रो रही थी। जिंदा थे जब तक इकरार कर ना पाया, निकला जनाजा मेरा फिर क्यों वो रोया।। दिल लूट कर वो मेरा ना मुझसे मिले मिले, सब जान कर भी उसने की मुझसे वेवफाई। खुद के बहाने खुद के आंसुओं में धोखा हो रहा था, मेरे कफन को कातिल रोककर दबा रहा था। क्या मजबूरियां थी ऐसी इकरार कर ना पाई। जनाज़ा उठा मेरा बारात सज ना पाया। दिल चाक हुआ मेरा उसका बेमुरब्बती से, क्यों उसने की सगाई अंजान अजनबी से। क्या तोड़ के दिल अपना बो कोई फ़र्ज़ खेल रही थी, क़ीमत पे आँसुओ के घर की इज़्ज़त बचा रही थी। लगता है आज मेरा खता नहीं था, वो मेरी मोहब्बत थी वो वेवफा नहीं थी। दुनिया के नियम शायद वो भी निभा रहा था, वो तो आज भी मोहब्बत अपनी जा रही थी। मय्यत पे मेरी यारों बरसात हो रही थी, लोगों ने जाके देखा मेरी महबूब रो रही थ… [7:18 PM, 6/19/2019] प्रिया शर्मा: ब्योजाह नहीं हम हंसे है, ब्योजह हम नहीं है राजये। बेवजह हम नहीं हंसे तो, बेवजह हम नहीं है राजये। जाने अनजाने क्यूं हमें ब्योजाह बना दिया तराना। छोड़ें और काम सपनो की दुनिया में खौये। [7:20 PM, 6/19/2019] प्रिया शर्मा: ब्योजह नहीं हम हंसे हैं, ब्योजह हम नहीं है राजये। बेवजह हम नहीं हंसे तो, बेवजह हम सौये नहीं हैं। जाने अनजाने क्यूं हमें ब्योजाह बना दिया तराना। छोड़ें और काम सपनो की दुनिया में खौये। [7:23 PM, 6/19/2019] निरपेश: वेबजह नहीं हंसे हम, वेबजह नहीं हैं रोये। वेबजह नहीं जागे हम वेबजह नहीं हैं सोये। हमने छोड़ दी सोच, सपनो में अब कल्पना की है। वेबजाह ही शब्द जोड़े, या बन गए तराना। लो मैंने कहा है, इस दिल का सब फसाना।। [7:38 अपराह्न, 6/19/2019] प्रिया शर्मा: मैं याद करती हूं।संग विरोध करती हूं। परिश्रम से वन का अभी शंख नाद करता हूं तुम ईश्वर, तुम्ही मौला, तुम सीमित भगवान मेरे हो। डांगो और फसादो का स्वयं श्राद्ध करता हूं। [7:39 PM, 6/19/2019] प्रिया शर्मा: मैं याद करती हूं,संग विरोध करती हूं। परिश्रम से वन का अभी शंख नाद करता हूं। तुम ईश्वर, तुम्ही मौला, तुम सीमित भगवान मेरे हो। डांगो और फसादो का स्वयं श्राद्ध करता हूं। [7:41 PM, 6/19/2019] +917409380757: मरते उन वीरों की अब चीखें ना दिखती हैं, तोड़ स्थिति जो दम देखो वो सांसे ना दिखती हैं। एक छींकने वाले नेताओं की सभी लंगर चिल्लाते हो, फूल जैसे कि बच्चों की अब लाशें नहीं दिखती हैं। ✍✍ धीरेन्द्र सिंह [7:44 PM, 6/19/2019] निरपेश: स्वर में आप जहां थोड़ा रुकते हो क्रिएट में वहां, शोर और कतार के अंत मे । जाओ। अंतिम पंक्ति को:- द्वेष और फसादों का, स्वम् अब श्राद्ध करता हूं। इस प्रकार लिखें। ये केवल एक सुझाव है [8:15 PM, 6/19/2019] सर्वेन्द्र सिंह: https://l.facebook.com/l.php?u=https%3A%2F%2Fsarvendrasingh1994.blogspot.com%2F2019%2F06%2Fblog-post_93.html%3Fspref%3Dfb %26fbclid%3DIwAR2O9tU7Ep-CKnH3FohMQfTGR6v4r-gPbYdWe16fxUp120Ag0dKvJOIRnS8&h=AT3H8d-_WOzz33cnyZEY6cBllFAwaBL56Ae2TiFT7IOq5_pFmcf2ANRpIdNQIFqC7M9disZmlGMh8nviJJ9wRAgYJhK7dy63L2PgldIOPjxXiQ0LClEWEN9HLpSsZoy7Hm1vlqvepWk8cqrZ41IiO2iDV5EuPbkQFtOQ8vABHhPKiw [11:41 AM, 6/20/2019] Priya Sharma: करे कोई भरे कोई यहां तकरार की बाते। हुई खत्म लाइफ से सभी इकरार की बात। मारो, जलाओ का न्याय सुनाई देता है। है थोड़ी यहां पुन:हथियार की बात। (दंगो और फँसादो को नहीं देना हवा तुम तो।) [8:05 AM, 6/21/2019] मोनिका: करे कोई ,भरे कोई दीं तकरार की बात। खत्म हो गए हैं लाइफ से प्यार, प्यार की बाते। जानो और मारो, अब यही है चारों तरफ शोर सुनाई दे रहा है हर सूं फरकत हथियार की बात। (डांगो और फँसादो को नहीं देना हवा तुम तो।) [8:28 AM, 6/21/2019] +91 89419 12642: योग दिवस पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित - 🙏😊👇 तन-मन को दिखाएँ, दूर वाए रोग। मनुज-ईश के मिलन का, नाम दूसरा योग। 🙏👇 - राजीव 'प्रखर' मुरादाबाद [8:28 AM, 6/21/2019] सर्वेन्द्र सिंह: इश्क में होड़ फड़कती थी, मैं जामने से देखते हैं जीतेगा क्या जामना दीवाने से, न वो जीता न हम जीते मोहब्बत में, सतर्कता बस एकता प्यार फैलाने से। लेखक- सर्वेन्द्र सिंह 9927099136 [8:42 AM, 6/21/2019] सर्वेन्द्र सिंह: 21 जून योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं योगा करो या योग करो, बस दूर खुद के रोग करो, रोज पंद्रह मिनट निकाल के, भाई योगा कई लोग करो। संसार सारा निरोग करो, योग करो भाई योग करो। लेखक- सर्वेन्द्र सिंह 9927099136 [9:46 AM, 6/21/2019] निरपेश: अगर कभी कोई पानी में डूबकर मर जाए और उसका शरीर 3 से 4 घंटे में मिल जाए तो उसकी जिंदगी वापस ला सकता हूं। अगर कभी किसी को ऐसी दूर्घटना दिखे या सुनाई दे तो तुरंत हमें बताएं।।। किसी की जान बचाई जा सकती है।। हमारा मोबाइल नंबर प्रशान्त त्रिपाठी +919454311111 और +919335673001 है आप सभी से क्षमा अनुरोध है कि इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये। किसी की भी जान बचाओ तो अपना जीवन सफल अनुभव।धन्यवाद पानी में डूबे हुए व्यक्ति का इलाज =================== लदान क्विंटल डले वाला नमक को देखने के रूप में बालाकर को उस पर कपड़े कम करके बता दें। धीरे-धीरे शरीर से पानी सिक्सोग लेगा। मरीज के होश में आने पर अस्पताल ले जाए। इससे पहले कि आप अस्पताल ले गए और डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया तो आप नमक वाले उपचार करें प्रभु कृपा से खुशी की लहरें फैलें। डाँक्टर… [10:41 पूर्वाह्न, 6/21/2019] +91 88002 06869: आप सभी रचना के बीज हैं, ?? कहानी आजतक के संपादक संजय सिन्हा की लिखी है तब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने साम के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी मैंने खबर में सिर झुकाकर कहा कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला खबर छपी किसी को आपत्तिजनक नहीं थी पर शाम को देखने से घर के लिए होने लगीं प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी सीढ़ी के पास मिल गए मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं "पति की बीवी नहीं?" मैं चौंका था “बीवी तो शौहर की होती है, मियां की होती है पति की तो पत्नी होती है भाषा के मामले में प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था हालांकि मैं कहना चाहता हूं कि स्पष्ट करना चाहता हूं कि भाव तो है न ? बीवी… [1:03 PM, 6/23/2019] मिनाक्षी ठतुर: 212 212 212 212 ग़ज़ल प्यार भरूँ बंदगी की तरह, दिल की निराशा में तुम मेहनत करो। जुस्तजू चांद पाने की मुझको नहीं, मैं बरतती रहूँ चाँदनी की तरह। मंज़िलें इश्क में जब करीब आ गई लम्हा-लम्हा केटी एक सदी की तरह। यूँ तो सभी अपना जी रहे फिर भी जीते नहीं पुरुष की तरह। रोलिंग तसव्वुर में मिलने लगें, और जब तक रुकें अजनबी की तरह। मीनाक्षी, मिलन विहार मुरादाबाद ✍✍✍ [1:13 PM, 6/23/2019] Priya Sharma: सपने देखने का हाल होता है। कोई नीड चेन लेता है, कोई रोटा है। सब है उस ईश्वर के हाथ की काठपुतली। कोई भी बैठे-बैठे लक्ष्य के लिए तैयार रहता है। [6:03 PM, 6/24/2019] प्रिया शर्मा: कथा कहानियो के माध्यम से शांति कहा। है बातो के करने से प्रकट क्रांति कहा। अगर आप सभी चाहते हैं कथन करें एक हो। उसके लिए साधना है, कोई भ्रांति ने कहा। प्रिया@गुरदासपुर@पंजाब [10:06 PM, 6/24/2019] +91 88580 60226: हर झटकेते पत्थरों को लोग दिल समझते हैं उम्रें जाती हैं दिल को दिल बनाने में - बशीर बद्र साहेब ... हमारी भी एक नाकामी कोशिश , कुछ दिल की बयानबाजी की ...✍✍🙏🏻🙏🏻 https://youtu. 6/25/2019] सर्वेन्द्र सिंह: सर्वेन्द्र एक सच्चा प्रेम गाथा [10:28 PM, 6/25/2019] मोनिका: एक पंडित जी एक दिन अपने बच्चे से उलझ गए। बच्चे ने भी एक प्रश्न चिन्ह दिया कि, "वो कौन-सी वस्तु है, जो कभी अपवित्र नहीं होती......?" पण्डित जी टोपी उठ कर पसीने-पसीने हो गए, मगर, बेटे के सवाल का जवाब नहीं देते। फाइनल, हार मान कर बोलो, चलू बता । बच्चे ने कहा कि कभी न अपवित्र होने वाली वस्तु है, टैंट हाउस के बैट्री, जो...... हिन्दू, -मुसलमान से ले कर पंडित, हरिजन कुम्हार, डोम और बाल्मीकि सभी धर्म के लोग उपयोग करते हैं। ये आस मैयत से लेकर पूजा पंडाल तक और धार्मिक कथा से ले कर उठानी तक हर क्षेत्र पर बिछते हैं। उन्हें कोई सुतक भी नहीं लगता। बाराती भी इन गद्दों पर सोम-रस पीने के बाद वमन करते हैं। छोटे बच्चों को सुविधानुसार इन पर पेशाब कर दिया जाता है। इतना ही नहीं, इन पर बिछी चादरों से जूतों की चमक भी बन जाती है। हद तो तब… [10:52 PM, 6/25/2019] प्रिया शर्मा: विहंस का मतलब बताएं आदरणीय [11:52 PM, 6/25/2019] +91 75054 66827: ✍ जिस बहाने की, गांठे खोल सकता है उस पढ़ाई पर नहीं जाना चाहिए। किसी की कोई बात बुरी लगे तो, दो तरह से सोचे ,, यदि व्यक्ति महत्वपूर्ण है, तो बात भूल जाएं और* बात महत्वपूर्ण है तो, व्यक्ति को भूल जाएं !! सफलता हमेशा अच्छे विचार से आती हैं... और अच्छे विचार आप जैसे अच्छे लोगों के संपर्क से आते हैं... जय श्री कृष्णा...... [2:36 PM, 6/26/2019] +917409380757: फूल की लाशों का हमने कब्रिस्तान बना डाला, हर सहरा को अब देखें रेगिस्तान बना डाला। हम ज़ुल्मों पर बस केबल हिन्दू-मुस्लिम पे अड़े रहे द्र ज़लिमो ने भारत को लिंचिस्तान बना डाला ✍धीरेन्द्र सिंह [3:46 PM, 6/26/2019] मोनिका: वो भारत की अनपढ़ पीढ़ी जो हम सबके साथ बहुत डँटती थी - कह रही थी "नल धीरे धीरे... पानी बदला लेता है! अन्न में ना जाइए, नाली का कीड़ा बन जाएगा! सुबह-सुबह तुलसी पर जल चढाओ, बरगद पूजो, पीपल पूजो, आँवला पूजो, मुंडेर पर चिड़िया के लिए पानी नहीं रखा कि नहीं? हरी सब्जी के लिए महिलाओं के लिए अलग-अलग सूची में सूची। कांच टूट गया है। उसे अलग रखें। कूड़े की बाल्टी में न डालें, कोई जानवर मुंह न मार दे। .. ये हरे पत्ते पत्ते में, कही भी जगह नहीं मिलेगी........ यह पीढ़ी इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थी पर पर्यावरण की चिंता करती थी, क्योंकि वह शास्त्रों की श्रुति परंपरा की शिष्य थी। और हम चार पुस्तकें पढ़कर उस पीढ़ी की आस्थाओं को जकड़ लेते हैं, धरती को विनाश की दृष्टी पर ले आते हैं। और हम "आधुनिक... [5:30 PM, 6/26/2019] +91 98975 48736: 👏🏻👏🏻 [9:07 PM, 6/26/2019] मयंक: अवधी बोली के साहित्य में इस शब्द का प्रयोग अधिक देखने को मिलता है। [9:34 पूर्वाह्न, 6/27/2019] मिनाक्षी ठतुर: आँख में आँसू की दौड़ो से भर जाता हूँ, अक्स बनके मेरी जाँ रुह में उतर जाता हूँ। भूलना चाहूँ भी तो कैसे दिखा दूँ तुमको, ख्याल बनके तुम सदस्यता में सँवर हो जाते हैं।। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ✍✍✍✍ [12:49 PM, 6/27/2019] Minaxi Thatur: दोस्ती करके किसी नादान से इश्क में टकरा गया तूफान से। दिल में रहते थे कभी जो हमनवां आज क्यूं बुरा मेहमान से। मेहनत में तू नहीं तो कुछ नहीं, अब गुलिस्तां भी वीरान से लगीं। याद ही शेष रही अब दरम्यां दिल के जोड़े कहीं भी अरमान से । खुदकुशी करना नहीं यूँ हारकर, मौत भी आती मगर सम्मान से। वो गया दिल तोड़ दिया तो क्या हुआ, मेहनत फिर भी मिला गौरव से। तंगदिल दे दे बस घाव ही, आरज़ू करना सदा भगवान से । मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद 🌹🌹🌹✍✍✍ [2:20 PM, 6/27/2019] मोनिका: बेशक मुझे अपनों से तुम गैरों में ले आओ। हाथों में मेरा थाम के बाहर गए हुए लोग जो राह ए हयात में उनकी भी मंजिलों के बारे में सोचते हैं, चलते हैं कि जीने की मुम्मल करें ग़ज़ल जला नई रदीफ नए काफ़िये चलो कोशिश करें कि प्यार के बने रिश्ते बने रहें दिल से मिटाएं दिल के सभी फासले वाले "मासूम" देखकर हमें पत्थर जो हो गए दिखलाएंगे ऐसे लोगों को हम आइने पर। मोनिका "मासूम" [3:57 PM, 7/1/2019] प्रिया शर्मा: नारी तुम्हारा रुप , कभी तो छाया, कभी तो धूप। ऋषियो ने कहा देवी सम्मान सींक। पूछी गई क्रांति का बिगुल बजाया। आंगन,पायल छोड़ दिया तुमने तलवार जबी तो ठामी। अनाचार,अत्याचार को फैंका कंपकंपी। ममता तेरे के आगे , टिकटा नहीं नो नाता। मेरी आंखो मे कभी आशु लेन नहीं। बड़े प्रेम से आपको होगा गढ़ा विधाता ने कदम कदम पे नहीं मिलता है माता का स्वरुप। मानव चोले मे हवान कलिये को नौचा है। चमन का हुआ बुरा,कैसे मूड ने खराब किया है। शर्म कर ले, धर्म कर ले ऐसे न कर्म करिये। ना मानो तो धरती सिर्फ सन कूप होगी। [4:22 PM, 7/1/2019] मोनिका: कुछ यूं भी 😊😊 कहूं हिटलर का पोता या उसे सद्दाम का नाती न जाने क्यों मेरी कोई मंजूर उसे नहीं भाती कि इक मुस्कान को उसकी लाटती है मेरी आंखें मुई सौतन है ये मेरे सामने भी नहीं आती मेरी परवाह वो करता है, कुछ ये मुहब्बत है बिछड़ कर आहें भरता है, कुछ ये मुहब्बत नहीं है मेरी इज्जत को जब से अबरु अपनी खबर है हरिक अफवाह से डरता हैं कुछ ये मुहब्बत नहीं है @मोनिका"मासूम " 28/6/16 मुरादाबाद [4:43 PM, 7/1/2019] प्रिया शर्मा: तेरे तेरे रुपये , कभी तो छाया, कभी तो धूप। ऋषियो ने कहा देवी सम्मान सींक। पूछी गई क्रांति का बिगुल बजाया। आंगन,पायल छोड़ दिया तुमने तलवार जबी तो ठामी। अनाचार,अत्याचार को फैंका कंपकंपी। ममता तेरी के आगे, टिकता नहीं कोई नाता। मेरी आंखो मे कभी आशु लेन नहीं। बड़े प्रेम से आपको होगा गढ़ा विधाता ने कदम कदम पे नहीं मिलता है माता का स्वरुप। मानव चोले मे हवान कलिये को नौचा है। चमन का हुआ बुरा,कैसे मूड ने खराब किया है। शर्म कर ले, धर्म कर ले ऐसे न कर्म करिये। ना मानो तो धरती सिर्फ सन कूप होगी। [8:30 PM, 7/1/2019] प्रिया शर्मा: आदमी आदमी ना रहा। इंसानियत ढूंढे ने कहा। कैसे मिलते-जुलते मिलते-जुलते कुपात्र कैसे मिलते हैं। लक्ष्य मार्ग ने कहा ना पता। ढूढ़ने पर कासा जहां। दिवारो में कवाड़ो मे। यू सुनामी में, बढ़ो मे। हौसला अफजाई ने कहा। जीना और मरना यह हौसला अफजाई नहीं। शत्रु है भाई बुरी बातें नहीं खोदते गड्डा। अपनो का अपनो ने सहा। [9:41 पूर्वाह्न, 7/2/2019] +91 94578 55522: दिल तड़पता है एक ज़माने से, आ भी जाओ किसी मंडल से, बने दोस्त भी मेरे दुश्मन, एक आपकी क़रीब आने से। जब अपना मुखिया बना ही लिया, कौन डरता है फिर ज़माने से, तुम भी दुनिया से दुश्मनी ले लो, दोनों मिल जाएं इस पाखंड से चाहे सारे जहान मिट जाएं, इश्क मिटता नहीं मिटाने से..😊 कवि ईशान्त शर्मा (ईशु) [9] :43 AM, 7/2/2019] निरपेश: लो भाई एक ओर गया काम से आहे भरने लगा महबूबा के नाम से। दिन ढलते हैं अब तो सूरज निकल रहे हैं, रात होने लगी है अब शाम से। बहुत खूब ईशु भाई, बधाइ हो। [12:57 अपराह्न, 7/2/2019] निरपेश: आज पहली बार कथा को लघु करने का प्रयास किया गया है आशा है गुरुजन मार्गदर्शन मार्ग। प्रस्तुत है मेरी लघुकथा "जन्मदिन" अरे दादा जी तैयार नहीं हुए अभी, ओफ्फो आप भी आपको पता है ना हमें दो जगह जाना है आज हम दोनों का जन्मदिन है, आज हम मिठाइयां गीतोने किताबें बस्ते भी लिए हैं और आपके वृद्धाश्रम के मित्रों के लिए बहुत से व्यंजन, जल्दी न देर होगी। आठ साल की सनी के दादा श्री जुगलकिशोर जी के पीछे पड़ रहे हैं और वे मुस्कुरा रहे हैं। चल रहे सनी बेटे को आशंका तो दो अभी तो सारे लोग उठे भी नहीं होंगे, या फ़िर बाज़ार भी तो अभी खुला नहीं। ओहो दादाजी अपको शाम को ही बाजार में ले जाने वाले थे, सनी फिर बिगड़ गईं। अरे सन्नी शाम को ली मिठाईयन ओर व्यंजन ताज़े थोड़े रहो, इस बार पीएम ने मुस्कुरा कर कहा। जुगल किशोर जी को साठ साल पहले का अपना बचपन याद आ गया जब आपकी जन्मदि… [10:13 PM, 7/2/2019] Minaxi Thatur: 🌹🌹 [4:04 PM, 7/3/2019] प्रिया शर्मा: मेरे आशु, मेरे मौला मुझे दर्शन दिखाओ। तेरे दर की भिखारी हूं, मुझे जीना अच्छा लगा। ये संसार ना अपना है, मगर खूबसूरत सपना है। कुछ गलत भी है, मगर सब कुछ काल्पनिक है। कड़ा हाथ से विष तो अमृत,मुझे पिलाना। अचेतन को चेतन तुम सीमित किया है। कुछ भी नहीं लिया, मगर दिया ही दिया। तेरे उपकारो की भावना मध्म हो सकती है। सद्गुरु तुम निर्दोष, मेरे पापो को भूला देना। मेरे अंदर करो प्रभु जी उजाला तुम। बंद सदियो से लग रहा है। निष्ठुर नहीं, तुम मर्यावान हो। सदगुरु कर कृपा अपने मार्ग पर चलें। [4:04 अपराह्न, 7/3/2019] प्रिया शर्मा: गीत सही है बताएं [10:58 अपराह्न, 7/3/2019] निर्पेश: एक प्रेम कहानी "प्रेम की इतिश्री" हुतो!! हटो ,,, सामने से ,,, अरे बचो !! स्कूटी को पैरों से रोकने की कोशिश करती 'श्री' चिल्लाती रही, और जब तक वह अपनी स्कूटी को रोक लेती है वह सामने खोखे के पास रुका 'प्रेम' की सायकल का अगला पहिया तोड़ कर मोड़ चुकी थी। अरे,,, आपको चोट तो नहीं लगी,,!! आसपास के लोग 'श्री' को उठा कर सहानुभूति दिखाते हैं। अँधेरा क्या,,,दिखाई देता है। पूरी सड़क पर घिनौनापन कर सकते हैं, परेशान नहीं कर सकते थे, आंखे क्या बस लड़कियों को घेरने के लिए घिरे हुए हैं ऊपरवाले ने। 'श्री' क्रोध से प्रेम को गूरूते हुए चिल्लाने लगे। सोरी,, प्रेम ने धीरे-धीरे कहा और अपनी साइकिल को तोड़ते हुए उसे पकड़ कर घसीटता हुआ सर झुकाये एक ओर चल दिया। 'श्री' भी अपनी स्कूटी के लिए बड़ी बड़ी हो गई। वहां खरीदी हुई भीड़ कभी 'श्री' की तो कभी 'प्रेम', की गलती से तस्वीरें ले रहे हैं। एक तो तूने उसकी सायकल तोड़ दी ऊपर से उसे ही अपराधी बन… [11:06 PM, 7/3/2019] निरपेश: प्रस्तुत है मेरी कहानी "मोहिनी 'एक भूतनी की प्रेम कथा'" के कुछ अंश:- मोहिनी निगाहों पर दूसरे के साथ बैठे, हर की नाक में एक अजब मनमोहक सूंघने लगी। पहली बार दिखने में और जब वह मोहिनी की तरह समा गया तो उसे पता भी नहीं चला। सुबह जब वह उठा तो अकेला था लेकिन उसका पूरा बदन टूट गया था उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी पूरी ताकत को किसी ने निचोड़ लिया हो, रात 'कुछ' होने का गहरा उसके 'बदन' पर धब्बे के निशान छोड़ रहे थे। वह उठकर नहाया पूजा करते हैं मंदिर में और रात के विषय में सोचते हैं, मोहिनी' भूत' है ?? एक आत्मा एक भूतनी उसे प्यार करती है। अब बार-बार ऐसा होने लगता है मोहिनी रात को देर तक दोनों बातें करती और छटपटाती रहती है। हर सुबह कुछ होने के साथ बहुत अधिक गिरफ्तारियां महसूस करता है। अब तो वह कभी कभी… [1:55 PM, 7/5/2019] मोनिका: दिन पशेमाँ शाम का रंगीं नज़र देखकर रात शर्मिंदगी है सुब्हो का इशारा देख कर एक मुश्किल में ज़रा करना सहना देखकर एक सफीन डूबना मत जाना देखकर ग़र्दिशों की मार से खुद टूट कर रह गया है वो मांगते हम बुरा देखा स्टार देखकर द्वेष की आतिशों से छोड़ देते हैं ख़ाक हो जाते हैं गुलशन एक शरारा देखकर झुक गए, धरती की जानिब जब गरूर ए आसमां खुली हुई जमी हुई धरती ने बाहें जल की धारा सभी पुस्तकें देखकर, कॉपियां बारिश में कह गईं खुश हुई "मासूम" बच्चा यह ख़सारा देख कर। मोनिका इनोस [2:01 PM, 7/5/2019] +91 98975 48736: 👍🏻👍🏻👏🏻👏🏻 [2:04 PM, 7/5/2019] Minaxi Thatur: हास्य ग़ज़ल आ गई बरसात का मौसम सुहाना झूमकर, देख लो धूम पर दरिया बह रहा है टूटकर। कह रहने के लिए गढ्ढे बचके हमनवां, डूब जाओगे सजनवा बस तनिक स्लाइड अगर । लबलबाती बिजबिजाती गंदगी की क्या खता, प्रीट कूड़े ने बजाई नालियों में डूबकर आपकी सूरत हसीं पर लग रही कीचड़ मुई, कार वाले की हिमाकत से लगी तुम्हें नजर। काँपते लिपो की ख़्वाहिश पर ज़रा सा गौर हो, चाय पीने को मिले संग में पकौड़े हों अगर।। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ✍😀🙏🙏 [2:36 PM, 7/5/2019] +91 89419 12642: एक अनोखा साक्षात्कार -------------------- --------- झूठ बोल सकते हो ? नहीं साहब। चोरों लुटेरों की मदद कर सकते हो ? नहीं साहब। किसी निर्दोष और लाचार को तो सदा कर सकते हो ? नहीं साहब। तो नेतागिरी का सपना, अभी भूल जाओ। ऐसा करो कि कुछ दिन, दारोगा जी के साथ बिताओ। बाद में आकर बताया। जब सब कुछ सीख जाओ, तो नेताओंगिरी में आ जाना।🙄🤥😁🤩🙏 - राजीव 'प्रखर' मुरादाबाद [1:36 PM, 7/7/2019] मोनिका: गजल प्रतियोगिता-45 महा प्रतियोगिता-8 राहें तारिकाएं वीरान हैं सड़कें यारो ग़म ज़दा शाहर की सुनसान हैं सड़कें यारो तारीक*- अंधेरी दूर तक जाती हैं मंज़िल का पता देने को हाल से अपने ही अन्जान हैं सड़कें यारो मोड़ से कई मोड़ों से अटक जातीं हैं ये न सोचें सोचे जा रहे हैं सड़कें या रो छोड़ जाती हैं मेरे दर पे मेरे अपनों को मुझ पे करती बड़ी एहसान हैं सड़के या वक्त के मारे कि गुरबत में बूबिका लोगों का घर है तो दालान हैं सड़कें यारो दूर लाएं जो हमें गांव की पगडंडी से। हां, उसी शहर की पहचान हैं सड़कें यारो नौकरी दुर्घटना "मासूम"हुई जाती है तेज रफ्तार से हैरान हैं सड़कें यारो मोनिका "मासूम" मुरादाबाद [2: 09 PM, 7/7/2019] +91 94578 55522: सुहानी फ़ज़ा है, सुहाना है सीज़न कहिए किसे,आशिकाना है सीज़न..!! ये खामोशियाँ, ये न ग़ैरों की बातें ये महोशियाँ, चाँद के चश्मे की बातें दीवाना है आलम, दीवाना है मौसम कह रही हैं किसे, आशिकाना है मौसम..!! ये महकी हवाएँ, ये बह्ली चौकें ये बेताबियों मे मचलती सदाएं है दिल शायराना, ताराना है सीज़न कह रही हैं किसे, आशिकाना है सीज़न..!! ये गुलशन के गुल, और भंवरों की हलचल ये दिलकश समा, वो पिघलता सा बादल रूहानी खुशी का ख़ज़ाना है मौसम कहिए किसे, आशिकाना है मौसम..!! सुहानी फ़ज़ा है, सुहाना है सीज़न कहती किसे, आशिकाना है सीज़न..!! ईशान्त शर्मा (ईशु) [4:03 PM, 7/7/2019] निरपेश: आपकी शायरी में मोहब्बत के जज्बात हैं, इस आशिकी के पीछे ज़रूर कोई बात है। [8:13 अपराह्न, 7/16/2019] सर्वेन्द्र सिंह: गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभः कामनाएँ गुरु रोलिंग ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना मान नहीं, गुरु से बड़ा इस दुनियाँ में कोई भगबान नहीं। ठाओ सर्वेन्द्र सिंह चौहान मुरादाबाद [11:48 AM, 7/22/2019] सर्वेन्द्र सिंह: https://youtu.be/jJ4YhWhDmOA हाँ मैं वेरोजगार हूँ यारो, वास्तव में वेकार हूँ यारो, बिक जाता हूँ फिर भी खड़ी चढ़ाई में , हाँ मैं स्वयं एक व्योपार हूँ यारो। [11:50 AM, 7/22/2019] सर्वेन्द्र सिंह: हाँ मैं वेरोजगार हूँ यारो, वास्तव में वेकार हूँ यारो, बिक जाता हूँ फिर भी भीड़ चढ़ाई में, हाँ मैं खुद एक व्योपार हूँ यारो। ठाओ सर्वेन्द्र सिंह 9927099136 हाँ मैं स्वयं एक व्योपार हूँ यारो। ठाओ सर्वेन्द्र सिंह 9927099136 हाँ मैं स्वयं एक व्योपार हूँ यारो। ठाओ सर्वेन्द्र सिंह 9927099136
Hi [4:05 PM, 7/7/2019] Nirpesh: "गांव का घर" मिट्टी का बेजान घरौंदा गांव में बर्बाद हुआ। क्योंकि कंक्रीट का एक घर बीच शहर आबाद हुआ।। कितनी मेहनत कितनी हसरत बूढ़ी माँ की जुड़ी हुई, मरकर भी थीं राह देखती उसकी आंखें खुली हुई।। जर्रे जर्रे से उस घर के माँ को पावन प्यार हुआ। उसका आँगन लीप लीप कर उसका तन बेजार हुआ।। जिसकी छाया पल बढ़ कर हर दर्जा उत्तरीर्ण हुआ। उसी घरौंदे के आंगन में बाबा का तन जीर्ण हुआ।। उनके सपने तोड़ दिए जब छोड़ा गांव का वह घर। अपनो का दिल तोड़ बसाया अरमानों का एक नगर।। उसकी बेपरवाही से मां बाप का हृदय विदीर्ण हुआ। अब तो बूढा बरगद भी प्रतीक्षा करके क्षीर्ण हुआ।। नृपेंद्र शर्मा "सागर" [4:10 PM, 7/7/2019] Nirpesh: एक पुरानी रचना जो हमने विवाह (04-03-2002) के कुछ दिन बाद (21-04-2002)लिखी थी। "प्यार की ताकत" कभी कभी एकांत में अकेले बैठे हुए, मन में एक सवाल उठता था। लोग प्यार में पागल कैसे हो जाते हैं, मन में ये सवाल उठता था। लेकिन कुछ दिन पहले हमने, सारे सवालों का जवाब पा लिया। क्योंकि हमने भी एक हसीना से, अपना दिल लगा लिया। प्यार का पागलपन जुदाई की तड़फ, अब हम भी महसूस कर रहे हैं। प्यार में पागल करने की पूरी ताकत है, अब हम भी कबूल कर रहे हैं। प्यार में पागल होने का भी, अपना अलग ही मज़ा है। बहुत अच्छी लगती है कभी जुदाई भी, जो प्यार की एक सज़ा है।। नृपेंद्र शर्मा "सागर" [6:45 AM, 7/8/2019] +91 94578 55522: 🍂🍃🍂🍃🍂🍃 हमें अपना जो कह देते तुम्हारा क्या चला जाता। हमारी बात रह जाती तुम्हारा क्या भला जाता। तुम्हे अपना बनाया था तभी तो दिल से लगाया था, तुम्हारी याद का एक ख्याल दिल में भी सजाया था, जमाने की तुम्हें थी फिक्र और हमको तुम्हारी थी। मेरा रुसवा भी हो जाना तुम्हें शोहरत दिला जाता। असल तुमने ना जानी थी तुम्हें उससे शिकायत थी। समंदर खुद ही प्यासा था तुम्हें वो क्या पिला जाता । वक्त का खेल है ऐसा मुझे कमतर बना डाला। जिधर से मैं गुजरता था उधर से काफिला जाता। 🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 कवि ईशान्त शर्मा (ईशु) [9:43 AM, 7/8/2019] Minaxi Thatur: ग़ज़ल बारिशों में सितम यूँ न ढाया करो, बेवजह रूठकर मत सताया करो। जान ले लो भले से हमारी सनम जान मुझको न तुम आज़माया करो। हम तलबगार तेरे पुराने सनम कुछ पुराने चलन भी निभाया करो। उलझनों में घिरी आज चाहत मेरी रूठकर उलझने मत बढ़ाया करो। छोड़कर राह में आज जाना नहीं, जा रहे हो अगर लौट आया करो। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ✍✍✍ [6:25 PM, 7/8/2019] +91 98975 48736: मैं तो यूही हन्स दी थी वो प्यार समझ बैठे, मेरी झुकी पलको को इक़रार समझ बैठे... मुझे सजने संवरने का बस शौक है थोड़ा सा, मुझे इश्क़ की खातिर वो तैयार समझ बैठे.... तन्हाई जगाती है, मुझे नींद नहीं आती, वो मेरी हालत को बीमार समझ बैठे... आँखो के इशारे से उन्हें पास बुलाया तो, मन ही मन जाने क्या सरकार समझ बैठे.... रश्मि प्रभाकर [7:00 PM, 7/8/2019] Minaxi Thatur: हास्य ग़ज़ल बारिशों में बलम तुम न जाया करो बाल धुल जायेंगे खौफ खाया करो डाई तुमने लगायी अभी कल ही थी रंग कच्चा न यूँ आज़माया करो। हो गये गाल काले सजन डाई से आइने को नहीं तुम सताया करो। बाल चाँदी से चमके चटक धूप में दाँतों के बिन भी तुम खिलखिलाया करो देख सावन को मन में हिलोरें उठें पोपले मुख से नगमें सुनाया करो। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ,🙏🙏🙏😄 [11:16 AM, 7/9/2019] Minaxi Thatur: ताटंक छंद जब सुप्त हृदय के आँगन में,तम ने डेरा डाला है, तब प्रभू की करुणा दृष्टि से,होता ज्ञान उजाला है। हो जीवन सफल सरस कोमल, मुझको ये वरदान मिले, भारत माता के चरणों में,हर जन्म मुझे स्थान मिले। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ✍✍✍✍9-7-19 [11:30 AM, 7/9/2019] +91 89419 12642: ताटंक में मुझ अनाड़ी का भी एक प्रयास - 🙏😊👇 ------------- जीवन रूपी संघर्षों ने, जब-जब मन को मारा है। तब-तब लिखने की अभिलाषा, मेरा बनी सहारा है। आभारी हूँ मैं अंतस में, उपजे प्रेरक भावों का। जिनसे जन्मी कविता ने ही, मुझको तम से तारा है। 🙏😊 - राजीव 'प्रखर' मुरादाबाद [12:40 PM, 7/9/2019] Hema: थक गया वह ढोते ढोते जब मृतप्राय बोझ, बैठ गया बीच राह में ही आखिर बैठना ही था, अब चला जो नहीं जाता। वह देख रहा है वहीं से दूसरे आने जाने वालों को। कुछ उसकी ही तरह हैं, थके,अवसादग्रस्त। बोझिल कदमों से घिसटते एक बोझ लादे काँधों पर। बोझ जो चिपटा हुआ है, हटाये नहीं हटता। पर वह देख रहा है, एक आध नहीं, बल्कि पूरी भीड़ की भीड़, हर्ष और उन्माद से भरी, मुस्कुराते मुखौटे पहनकर, लगी है दौड़ने...... अव्वल आने की होड़ में। वह सोच रहा है खिन्नमना ऐसा कैसे हो सकता है? उनके कंधों पर भी तो, लटका है आखिर उनके मृत अन्त:करण का शव। ✍हेमा तिवारी भट्ट ✍ [1:43 PM, 7/9/2019] Minaxi Thatur: अंग्रेज़ी की भी देखो अजब कहानी है बड़े-बड़ो को याद दिलाये बस नानी है रात किये थे याद , भूले अब संडे मंडे सुबह कापी में मिले बस गोल ही अंडे हाय नेचर को पढ़ डाला क्यों कर नटूरे मैडम ने धर डाले गाल पर दो भटूरे। गजब हुआ जब,मैडम ने कहा मुझको 'फूल' हमने भी शरमाते हुए कहा यू टू फूल.._. बोली मैडम,ओह!यू आर सो रिडिक्यूलस, ना मैडम जी! ना !आई एम तो हरिक्यूलस।। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ,✍✍😀🙏 [7:56 PM, 7/9/2019] Nirpesh: प्रस्तुत है एक कहानी; "मेरा इंतज़ार करना" पुरानी कहानी (ये कहानी मैने गांव में किसी से सुनी थी) बहुत पहले किसी गांव में एक किसान रहता था, उसके पास बहुत खेत थे इसीलिए गांव के लोग उन्हें चौधरी कहते थे। पुराने जमाने में लोग सुबह जल्दी उठ कर दिशा मैदान(शौच) आदि के लिए जंगल जाते थे। चौधरी साब भी रोज सुबह मुंह अंधेरे ही जंगल चले जाते थे। चौधरी साब ऐसे  भी घर से कुछ दूरी पर बनी बैठक पर ही रहते थे। उस दिन भी चौधरी साब सुबह चार बजे ही जंगल के लिए चल दिये। जुलाई का महीना शुरू हो चुका था एकाध बार हल्की बारिश भी हुई थी फिर भी सुबह चार बजे उषाकाल का हल्का उजाला दिखने लगता था। चौधरी साब ने जैसे ही गांव के बाहर बने कुएं को पार किया उन्हें एक बहुत सुंदर स्त्री गहनों से लदी हुई सारा श्रंगार किये कुएं की जगत (कुएं के ऊपर जो दीवार का घेरा होता है) पर बैठी दिखी। उसके गहने … [11:29 AM, 7/10/2019] Monika: नहीं बिल्कुल नहीं,इकदम नहीं है कि अब सांझा खुशी और ग़म नहीं है पड़ा है इस कदर जह्नों पे सूखा किसी के दिल की धरती नम नहीं है अजी...छोड़ो ये बातें पत्थरों की गुलों के रुख पे भी शबनम नहीं है मोहब्बत से भरे..सच्चे स्वरों की सुनाई देती अब सरगम नहीं है किताबे-दिल पढ़े "मासूम" अब क्यों कि ये रुज़गार का कॉलम नहीं है। "मोनिका "मासूम" [4:01 PM, 7/10/2019] Nirpesh: Story mirrer ne mujhe ye samman diya meri do kahaniyon:_1-भूल और 2- दास्ताँ-ए-दावत के लिए। प्रस्तुत है कहानी "दास्ताँ-ए-दावत" ठाकुर संग्राम सिंह बहुत उदार जमींदार थे। सारे गांव में उनको बहुत आदर सम्मान मिलता था।संग्राम सिंह जी भी सारे गांव के सुख दुख में विशेष ध्यान रखते। उसी गांव के बाहर कुछ दिन से एक गरीब परिवार आकर ,झोंपडी बना कर रह रहा है ,पता नहीं कहाँ से किन्तु बहुत दयनीय अवस्था मे थे सब। परिवार में एक बीमार आदमी रग्घू उसकी पत्नी रधिया , दो बेटियां छुटकी और झुमकी। बेचारी रधिया गांव के कूड़े से प्लास्टिक धातु ओर अन्य बेचने योग्य बस्तुएं बीन कर कबाड़ी को बेचती थी। बामुश्किल एक समय का बाजरा, जुआर अथवा संबई कोदो जुटा पाती और उसे उबालकर पीकर सभी परिवार सो जाता। बच्चों ने कभी पकवानों के नाम भी नहीं सुने थे ,चखने की तो बात ही स्वप्न थी। आज संग्राम सिंह जी के… [10:43 PM, 7/10/2019] Minaxi Thatur: कथा (जाम) "हमारी माँगे पूरी करो.....जो हमसे टकरायेगा...." नारों से माहौल काफी गर्म हो चला था।सड़क पर कुछ लोग धरना देकर बैठे थे ।दोनो ओर लम्बी -लम्बी कतारें लगी थी ।पुलिस वाले जाम खुलवाने की भरसक कोशिश कर रहे थे ।एक एम्बुलेंस भी जाम में फँसी हुयी थी ।एम्बुलेंस में बैठे लोगों के चेहरे जर्द पड़ चुके थे ।स्कूलों की वैन के बच्चे भी भूख और गर्मी से बिलबिला रहे थे ।मगर भीड़ की अगुवाई कर रहा विनीत किसी की नहीं सुन रहा था ।उसका स्वर और भी तेज हो गया था...हमारी माँग.....जो हमसे..." तभी उसके फोन की घंटी बजी..थोड़े झुंझलाते हुए फोन रिसीव किया,हैलो...!उधर से सुधा की घबराई हुयी आवाज़ थी ,"..सुनिए'..उसकी बात पूरी होने से पहले ही विनीत बोला,क्या है यार?सुबह बताया था न ..!कहीं बिज़ी हूँ।फिर क्यों डिस्टर्ब कर रही हो? बाद में बात करना।सुधा ने थोड़ा चिल्लाते हुए कहा ,अरे… [7:19 AM, 7/11/2019] +91 98975 48736: बारिश पर एक बाल गीत... .................... बादल☁ आये झूम के, आसमान को चूम के, गरज गरज कर बरस रहे हैं, लरज लरज कर बरस रहे हैं, चारों ओर भरा है🌧 पानी, गीली हो गयी मुन्नी👩 रानी, चुननू मुन्नू 👬बाहर निकले, खेल खेल में दोनों फ़िसले, चुननू ने एक नाव 🚣 बनायी, पानी पर उसने तैरायी, अंदर से माँ 👸दौड़ी आयी, चुननू मुन्नू पर चिल्लायी, क्यों इतना हुड्दन्ग मचाया, छप कर पानी फ़ैलाया गन्दे पानी में खेलोगे तो तुम बीमारी झेलोगे, अंदर चलो छोड़ शैतानी, बारिश रुक गयी बह गया पानी... रश्मि प्रभाकर... [7:37 PM, 7/11/2019] Priya Sharma: हो दिवाली,हो चाहे ईद मनाती है लड़किया बहुत अच्छे व्यजन ही बनाती है लड़किया। उत्सव हंसकर मनाती है धरती की ये परिया। माता पिता को हमेशा लुभाती है लड़किया। [2:18 PM, 7/12/2019] Monika: मधुरिम लम्हें चंद लिखे हैं दुख के लम्बे छंद लिखे हैं कुरुक्षेत्र से जीवन रण में अन्तर्मन के द्वंद लिखे हैं हाथ किसी के गरल हलाहल नाम कहीं मकरंद लिखे हैं ओढे मखमल कोय, किसी की चादर में पैबंद लिखे हैं इस ग़म ने खुशियों पर पहरे चाक और चौबंद लिखे हैं शायद उसने जानबूझ कर द्वार भाग्य के बंद लिखे हैं बंधे हुए शब्दों के भीतर भाव सभी स्वछंद लिखे हैं ढूँढो रे "मासूम" गमों में छिपे हुए आनंद लिखे हैं मोनिका "मासूम" मुरादाबाद [9:12 AM, 7/14/2019] Nirpesh: प्रेम पंथ है कितना पावन, इसकी महिमा कोन कहे। विश्वामित्र से महा योगी भी , प्रेम जाल से बच न सके।। इसकी महिमा बड़ी अनोखी, इससे है संसार सुखी। प्रेम न होता इस जग में तो, होती ना फिर ये सृष्टि।। प्रेम के पथ पर चलने वाले, प्रेमी कभी न हारेंगे। प्रेम से जग को जीतेंगे , वे सब को बस में कर लेंगे। । प्रेम की महिमा बड़ी निराली, ऋषी मुनि जन सब गाते हैं। प्रेम बिना यह दुनिया खाली, सबको यह सिखलाते हैं। प्रेम की शक्ति बड़ी निराली , इससे सब संसार डरे। आओ हम सब द्वेष भूलकर, एक दूजे से प्रेम करें।। [9:24 PM, 7/14/2019] Nirpesh: 👌👌 [9:26 PM, 7/14/2019] Nirpesh: 9997945063 ye pinkish kumar chauhan hain inhe add kar lena adhyapak hain kavitayen karte hain. [9:32 PM, 7/14/2019] Nirpesh: आयी नहा कर रस में और छंदों का श्रृंगार किया। ऐसी ही अलंकारिक तुकबन्दी को हमने कविता नाम दिया।। [8:18 AM, 7/15/2019] +91 99979 45063: भाई नृपेन्द्र जी क़ो group में जोड़ने के लिऐ हृदयतल से आभार .....🙏🏻 [8:19 AM, 7/15/2019] +91 99979 45063: ये सोचकर दिल मेरा , बहुत उदास होता है वैरी कोई गैर नहीं , अपना ही खास होता हैl चौहान मन की बात ,कभी कहना ना भूल से यहाँ गमगीन बातों का भी, बहुत हास होता है ll ✍ पिंकेश चौहान सहायक अध्यापक, बह्जोई मूलनिवासी ठाकुरद्वारा , मुरादाबाद [7:35 PM, 7/15/2019] +91 94104 99999: बरसात (मुक्तक) 💦💦⛈⛈💦💦⛈💦💦 ये काले बादलों से जैसे आती रात क्या कहने ये रिमझिम हौले बूंदों का मधुर आघात क्या कहने अहा ! क्या दृश्य है अद्भुत फुहारों के बरसने का ये मस्ती और किस मौसम में है बरसात क्या कहने 💦⛈💦⛈💦⛈💦⛈💦 [7:41 PM, 7/15/2019] Nirpesh: श्रमिक,, हमने जलते अंगारों से निज पांव को धोया है। अपनी हालत को देख देख पत्थर भी पिघल कर रोया है। हम श्रमिक हैं श्रम को हैं बने निज स्वेद के वस्त्र सदा पहने। हमने अपानी श्रम बूंदों से निज तन मन सदा भिगोया है। [11:47 AM, 7/16/2019] Monika: आदरणीय गुरु जी को प्रणाम🙏🏻🙏🏻 गुरु वसुधा,गुरु नील गगन अरु गुरु चंदा ,गुरु तारे गुरु दिनकर की प्रथम किरण जो दूर करे तम सारे गुरु अविचल गिरिराज हिमालय रिपुदल को ललकारे गुरु गंगा की धार ,जो भव सागर से पार उतारे गुरु तरुवर ,जो बाँट रहा निज संपद पर उपकारे गुरु तिनका, वो सुक्ष्म जो संकट में ये प्राण उबारे मेघों का अस्तित्व गुरु, क्षण भर को जो अवतारे पीर पराई देख स्वयं जो बूँद- बूँद बरसा- रे गुरू जलिध का गर्भ, छिपे हैं जिसमे माणिक सारे पाये क्या "मासूम" जो डरकर बैठा रहे किनारे मोनिका मासूम मुरादाबाद [3:14 PM, 7/16/2019] Nirpesh: गुरु पर्व पर मेरी एक रचना के साथ सभी को गुरुपूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई- "गुरु महिमा" 'गु'अंधेरा गहन है और 'रु' रौशनी ज्ञान की। गुरु साधारण नहीं एक मूर्ति है ज्ञान की। ज्यूँ बनाता मृतिका से सुंदर आकार, कुम्भकार । अंदर सहारा हाथ का ,और देता चोट बाहर। ऐंसे ही गुरु ज्ञान का प्रकाश भीतर में भरें और चोट अनुशासन की, भी बाहर से करें। जैसे अग्नि तपाकर कुंदन को असली रूप दे। ऐंसे ही गुरु ज्ञान ज्वाला में अज्ञान मेट दें। जो सिखाये जीवन पथ पर तनिक सा भी ज्ञान। उसको गुरु मानकर करना सदा  सम्मान। नृपेंद्र शर्मा "सागर" [3:21 PM, 7/16/2019] Nirpesh: गूगल ही गुरु हो गए, गूगल ही भये ज्ञान। गूगल जो भी कहत हैं, उसको सच्चा मान।। [4:32 PM, 7/16/2019] Monika: 😅😅👍🏻👍🏻 [4:33 PM, 7/16/2019] +91 89419 12642: कण कण में संसार के, बोलो बैठा कौन। ज्यों ही पूछा हो गया, गूगल झट से मौन। 😕😕😕 _ राजीव 'प्रखर' मुरादाबाद [8:13 PM, 7/16/2019] सर्वेन्द्र सिंह: गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभःकामनाएँ गुरु बिन ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना मान नहीं, गुरु से बढ़कर इस दुनियाँ होता कोई भगबान नहीं। ठाo सर्वेन्द्र सिंह चौहान मुरादाबाद [6:47 PM, 7/17/2019] Nirpesh: जीवन मेरा बना रहा क्यों एक पहेली। विरहिन तड़फ रही सदियों से बहुत अकेली। प्रेमाग्नि जल रही बुझाओ सावन आकर। प्रेम सुधा बरसाओ अब तो साजन आकर।। नृपेंद्र "सागर"
[10:43 AM, 7/18/2019] सर्वेन्द्र सिंह: आया वुड़ापा, कमरिया झुक, जवानी ने साथ छोड़ा,बीमारी गई रुक, जिसको अपना समझकर, मैंने साथ दिया जीवनभर, वही बोझ समझते हमको, और पहुँचाते हैं दुख। जिसको जीवन साथी समझा,अब वो भी गाली बकती है, पति परमेश्वर मानने वाले की, अब देखो-ये कैसी भक्ती है, सबसे अच्छे मित्र ने देखो मोड़ लिया है मुख। सहारा समझके जिसको अपना,मैंने हर संकट झेल के पाला है, बोझ समझ कर हमको उसने घर से आज निकाला है, पोते तक न बोल सके,"कि'दादा जाओ रुक। कैसे सहें कैसे कहें,वुड़ापा एक सचचाई [11:22 AM, 7/18/2019] सर्वेन्द्र सिंह: - बुढ़ापा - आया वुढ़ापा, कमरिया झुक, जवानी ने साथ छोड़ा,बीमारी गई रुक, जिसको अपना समझकर, मैंने साथ दिया जीवनभर, वही बोझ समझते हमको, और पहुँचाते हैं दुख। जिसको जीवन साथी समझा,अब वो भी गाली बकती है, पति परमेश्वर मानने वाले की, अब देखो-ये कैसी भक्ती है, सबसे अच्छे मित्र ने देखो मोड़ लिया है मुख। सहारा समझके जिसको अपना,मैंने हर संकट झेल के पाला है, बोझ समझ कर हमको उसने घर से आज निकाला है, पोते तक न बोल सके,"कि'दादा जाओ रुक। कैसे सहें कैसे कहें,वुड़ापा एक सच्चाई है, साथ न देता है इस पल में सगा जो हमारा भाई है, नहीं है कोई किसी का,ऐसा है ये कलयुग। सर्वेन्द्र कह तू कुछ न सह, राम भजन कर प्यारे, जो भी हैं संकट तेरे सारे जाएंगे कट, तेरी नैया को भवसागर से अब वो ही पार उतारे, राम नाम में ही है भईया सच्चा सुख। लेखक- ठाo सर्वेन्द्र सिंह चौहान 9927099136 [11:37 AM, 7/18/2019] सर्वेन्द्र सिंह: - बुढ़ापा - आया वुढ़ापा, कमरिया झुक, जवानी ने साथ छोड़ा,बीमारी गई रुक, जिसको अपना समझकर, मैंने साथ दिया जीवनभर, वही बोझ समझते हमको, और पहुँचाते हैं दुख। जिसको जीवन साथी समझा,अब वो भी गाली बकती है, पति परमेश्वर मानने वाले की, अब देखो-ये कैसी भक्ती है, सबसे अच्छे मित्र ने देखो मोड़ लिया है मुख। सहारा समझके जिसको अपना,मैंने हर संकट झेल के पाला है, बोझ समझ कर हमको उसने घर से आज निकाला है, पोते तक न बोल सके,"कि'दादा जाओ रुक। कैसे सहें कैसे कहें,वुड़ापा एक सच्चाई है, साथ न देता है इस पल में सगा जो हमारा भाई है, नहीं है कोई किसी का,ऐसा है ये कलयुग। सर्वेन्द्र कह तू कुछ न सह, राम भजन कर प्यारे, जो भी हैं संकट तेरे सारे जाएंगे कट, तेरी नैया को भवसागर से अब वो ही पार उतारे, राम नाम में ही है भईया सच्चा सुख। लेखक- ठाo सर्वेन्द्र सिंह चौहान 9927099136 [4:50 PM, 7/18/2019] Nirpesh: सूरत तिहारी मन मोहन, मन मोह गयी। अब सिवा तेरे कोई, और नहीं भाता है।। तुम्हे देख यूँ लगे, जैसे तुम हमारे स्वामी। तुम से हमारा कोई, जन्मों का नाता है।। कितनी मधुर लगे, तान मुरली की तेरी। जब प्रेम रस डूबी, धुन तू बजाता है।। अब तो हमें भी निज, धाम तू बुला ले कृष्णा। तेरे बिन कहीं अब, रहा नहीं जाता है।। चारों पहर आठो याम, भजते हैं तेरा नाम। भक्तों को इतना क्यों, मोहन सताता है।। मन भावना से अब, हम तेरे हो गए। आत्मा परमात्मा  का सच्चा एक नाता है।। विरहा में और ना सताओ,  अब गिरधारी। दरश बिना अब कहीं, चैन नहीं आता है।। सूरत तिहारी गिरधारी, मन मोह गयी। अब सिवा तेरे कोई, और नहीं भाता है।। ©नृपेंद्र शर्मा "सागर" [5:10 PM, 7/18/2019] Monika: गज़ल कोई फिर सरफरोशी लिखी है मुहब्बत में यूं गर्म जोशी लिखी है वजूद अपना "मासूम" ने खुद मिटाकर मुकद्दर में खाना बदोशी लिखी है मोनिका"मासूस" [6:04 PM, 7/18/2019] +91 99979 45063: जख्मों का बाजार लगा था शहर में l हमें इत्तला तक न दी , किसी ने शहर में ll हाँ , बेशक हम सौदागर ना सही l गम-ए-हिज्र * का खरीदार था मैं शहर में ll ✍पिंकेश चौहान *जुदाई का गम [8:15 PM, 7/18/2019] Minaxi Thatur: ग़ज़ल दिल ही दिल में उनको चाहा करते हैं, सीने में इक तूफां पाला करते हैं। जब आये सावन का मौसम हरजाई, यादों की बारिश में भीगा करते हैं। हमने कितनी रातें काटीं रो-रोकर, वो भी शायद, करवट बदला करते हैं। होते कब सर शानों पर दीवानों के, फिर भी क्यूँ खुद को दीवाना करते हैं। लिक्खें जितने नग़में उनकी यादों में, हँसकर हर महफिल में गाया करते हैं । मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ✍✍✍✍ [3:45 PM, 7/19/2019] +91 99979 45063: रेत पर आशियां बनाने से क्या फायदा l ख्वाब समंदर में, कश्ती चलाने से क्या फायदा ll जब दिल में ही हसरत ना हो चौहान l फ़िर यूं निगाहें मिलाने से क्या फायदा ll ✍पिंकेश चौहान [6:15 PM, 7/19/2019] +91 99979 45063: यूं घुट-घुट कर जीने से क्या फायदा l अरमां दिल में छिपाने से क्या फायदा ll कह डालो चौहान , जो दिल में है तेरे l यूं हसरतों क़ो दबाने से क्या फायदा ll ✍ पिंकेश चौहान [10:36 PM, 7/19/2019] Nirpesh: शीशे का दिल था मेरा कुछ आरजू के अक्स थे, इश्क़ की ठोकर लगी और किर्चा किर्चा हो गया। लाख चाहा छिपाना हाले दिल हमने मगर, रात भी बीती नहीं और सब में चर्चा हो गया।। [11:48 AM, 7/22/2019] सर्वेन्द्र सिंह: https://youtu.be/jJ4YhWhDmOA हाँ मैं वेरोजगार हूँ यारो, वास्तव में वेकार हूँ यारो, बिक जाता हूँ फिर भी होकर खड़ा बाजारों में, हाँ मैं खुद एक व्योपार हूँ यारो। [11:50 AM, 7/22/2019] सर्वेन्द्र सिंह: हाँ मैं वेरोजगार हूँ यारो, वास्तव में वेकार हूँ यारो, बिक जाता हूँ फिर भी होकर खड़ा बाजारों में, हाँ मैं खुद एक व्योपार हूँ यारो। ठाo सर्वेन्द्र सिंह 9927099136 [10:32 AM, 7/23/2019] Nirpesh: काफिया मिलके रदीफ़ हो जाये, दिल जरा दिल के करीब हो जाये। इबादत करलें इश्क़ में हम भी, उनकी इनायत नशीब हो जाये। लो हमने कह दिया चाहत का मतला, मुकम्मल जिंदगी की ग़ज़ल हो जाये। हाले दिल उनको सुनाई दे अपना, दुआ पर शायद अमल हो जाये। इश्क़ में उनको बना दें खुदा हम, बन्दगी सुबह शाम हो जाये। हमतो बदनाम ऐसे ही बहुत हैं, इश्क़ में शायद नाम हो जाये।। ©नृपेंद्र शर्मा "सागर" [2:19 PM, 7/23/2019] Monika: लगे कोई पहेली है कहे मेरी सहेली है दिखे भी हू ब हू मुझ सी अदा मेरी ही ले ली है ये तन्हा देख के मुझको बनाने बातें है लगती कभी हँसती कभी रोती हजारों खेल खेली है हमेशा साथ रहती है मेरे हर एक सुख दुःख में खुशी में नाचती गम में मेरी थामे हथेली है चढ़े जो दिन लिपट जाती है सबके सामने मुझसे यूं होते साँझ घबराए कोई दुल्हन नवेली है बहुत "मासूम "है छाया मेरी हर बात भी माने जहाँ की भीङ मे गुमसुम डरी सहमी अकेली है मोनिका मासूम 📝 [2:40 PM, 7/23/2019] Minaxi Thatur: काश अगर मैं पंछी होता, (बाल -कविता) काश अगर मैं पंछी होता, नील गगन में उड़ता । रंग -बिरंगे पर फैलाकर, सैर -सपाटा करता। बैठ आम की डाली पर मैं, आम रसीले खाता। मम्मी मुझको नहीं जगातीं, खूब मजे से सोता, होमवर्क न करना पड़ता हर दिन संडे होता। चंद्र यान सँग उड़कर मैं भी, दुनिया में इठलाता। चंदा -मामा से मिलकर फिर बातें खूब बनाता। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
जनसंख्या बढ़ती जाती है,    समस्याओं का मूल यही। अभी नहीं गर इसको रोका,     होगी भारी भूल यही। क्यों गम्भीर नहीं अब होते,    संसाधन की कमी को रोते। अभी जो दिखती तिनके जैसी,     बढ़कर होगी शूल यही। अभी नियंत्रण बहुत ज़रूरी,    बन जाये ना फिर मज़बूरी। जनसंख्या पर नियम बने अब, है इसका निर्मूल यही।। SARVENDRA SINGH 9927099136

बुधवार, 19 जून 2019

पिता

पिता
क्या निभाया है हमने फर्ज अपने आप का,
क्या चुकाया है हमने कर्ज अपने बाप का,
सम्भाला जिसने हमको शौक सारे छोड़ के,
सपने पूरे किए मेरे खुद के सपने तोड़ के,
खातिर हमारी जिसने झेला दर्द संकटों के ताप का।

माँ हमें जन्म दिया  बोलना सिखाया,
पिता ने हमें जीवन जंग में खुद को तोलना सिखाया,
मतलब सिखाया उसने हमको सेवा और श्राप का।
लेखक-
           सर्वेन्द्र सिंह
        9927099136
मय्यत पे मेरी यारों बरसात हो रही थी,
लोगों ने जाकर देखा तो बेवफा वो रो रही थी।

जिंदा रहे थे जब तक इकरार कर ना पाई,
निकला जनाज़ा मेरा फिर क्यों वो रोने आयी।।

दिल लूट कर वो मेरा ना मुझसे मिलने आयी,
सब जान कर भी उसने की मुझसे वेवफाई।

खुद के गुनाह खुद के आंसू में धो रही थी,
मेरे कफन को कातिल रोकर भिगो रही थी।

क्या मजबूरियां थी ऐसी इकरार कर ना पाई।
जनाज़ा उठा मेरा बारात सज ना पाई।

दिल चाक हुआ मेरा उसकी बेमुरब्बती से,
क्यों उसने की सगाई अंजान अजनबी से।

क्या तोड़ के दिल अपना बो कोई फ़र्ज़ निभा रही थी,
कीमत पे आँसुओ की घर की इज़्ज़त बचा रही थी।

लगता है आज मुझको उसकी खता नहीं थी,
वो मेरी मोहब्बत थी वो वेवफा नहीं थी।

दुनिया के नियम शायद वो भी निभा रही थी,
वो तो आज भी मोहब्बत अपनी जता रही थी।

मय्यत पे मेरी यारों बरसात हो रही थी,
लोगों ने जाके देखा मेरी महबूब रो रही थ…
जून जा रहा है,
मानसून आ रहा है।
सताया बहुत गर्मी ने,
अब सुकून आ रहा है।

हमें गर्मी ने खूब सताया है,
बदला लेने बादल आया है।
धूप ने घूँघट ओड़ा है गर्मी में,
बादल भी शर्माया है वेशर्मी में।
क्योंकि बरसात का हनीमून आ रहा है।


लेखक-
           सर्वेन्द्र सिंह
        9927090136

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018