फ़ॉलोअर

बुधवार, 19 जून 2019

मय्यत पे मेरी यारों बरसात हो रही थी,
लोगों ने जाकर देखा तो बेवफा वो रो रही थी।

जिंदा रहे थे जब तक इकरार कर ना पाई,
निकला जनाज़ा मेरा फिर क्यों वो रोने आयी।।

दिल लूट कर वो मेरा ना मुझसे मिलने आयी,
सब जान कर भी उसने की मुझसे वेवफाई।

खुद के गुनाह खुद के आंसू में धो रही थी,
मेरे कफन को कातिल रोकर भिगो रही थी।

क्या मजबूरियां थी ऐसी इकरार कर ना पाई।
जनाज़ा उठा मेरा बारात सज ना पाई।

दिल चाक हुआ मेरा उसकी बेमुरब्बती से,
क्यों उसने की सगाई अंजान अजनबी से।

क्या तोड़ के दिल अपना बो कोई फ़र्ज़ निभा रही थी,
कीमत पे आँसुओ की घर की इज़्ज़त बचा रही थी।

लगता है आज मुझको उसकी खता नहीं थी,
वो मेरी मोहब्बत थी वो वेवफा नहीं थी।

दुनिया के नियम शायद वो भी निभा रही थी,
वो तो आज भी मोहब्बत अपनी जता रही थी।

मय्यत पे मेरी यारों बरसात हो रही थी,
लोगों ने जाके देखा मेरी महबूब रो रही थ…

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें