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गुरुवार, 25 जुलाई 2019

Hi [4:05 PM, 7/7/2019] Nirpesh: "गांव का घर" मिट्टी का बेजान घरौंदा गांव में बर्बाद हुआ। क्योंकि कंक्रीट का एक घर बीच शहर आबाद हुआ।। कितनी मेहनत कितनी हसरत बूढ़ी माँ की जुड़ी हुई, मरकर भी थीं राह देखती उसकी आंखें खुली हुई।। जर्रे जर्रे से उस घर के माँ को पावन प्यार हुआ। उसका आँगन लीप लीप कर उसका तन बेजार हुआ।। जिसकी छाया पल बढ़ कर हर दर्जा उत्तरीर्ण हुआ। उसी घरौंदे के आंगन में बाबा का तन जीर्ण हुआ।। उनके सपने तोड़ दिए जब छोड़ा गांव का वह घर। अपनो का दिल तोड़ बसाया अरमानों का एक नगर।। उसकी बेपरवाही से मां बाप का हृदय विदीर्ण हुआ। अब तो बूढा बरगद भी प्रतीक्षा करके क्षीर्ण हुआ।। नृपेंद्र शर्मा "सागर" [4:10 PM, 7/7/2019] Nirpesh: एक पुरानी रचना जो हमने विवाह (04-03-2002) के कुछ दिन बाद (21-04-2002)लिखी थी। "प्यार की ताकत" कभी कभी एकांत में अकेले बैठे हुए, मन में एक सवाल उठता था। लोग प्यार में पागल कैसे हो जाते हैं, मन में ये सवाल उठता था। लेकिन कुछ दिन पहले हमने, सारे सवालों का जवाब पा लिया। क्योंकि हमने भी एक हसीना से, अपना दिल लगा लिया। प्यार का पागलपन जुदाई की तड़फ, अब हम भी महसूस कर रहे हैं। प्यार में पागल करने की पूरी ताकत है, अब हम भी कबूल कर रहे हैं। प्यार में पागल होने का भी, अपना अलग ही मज़ा है। बहुत अच्छी लगती है कभी जुदाई भी, जो प्यार की एक सज़ा है।। नृपेंद्र शर्मा "सागर" [6:45 AM, 7/8/2019] +91 94578 55522: 🍂🍃🍂🍃🍂🍃 हमें अपना जो कह देते तुम्हारा क्या चला जाता। हमारी बात रह जाती तुम्हारा क्या भला जाता। तुम्हे अपना बनाया था तभी तो दिल से लगाया था, तुम्हारी याद का एक ख्याल दिल में भी सजाया था, जमाने की तुम्हें थी फिक्र और हमको तुम्हारी थी। मेरा रुसवा भी हो जाना तुम्हें शोहरत दिला जाता। असल तुमने ना जानी थी तुम्हें उससे शिकायत थी। समंदर खुद ही प्यासा था तुम्हें वो क्या पिला जाता । वक्त का खेल है ऐसा मुझे कमतर बना डाला। जिधर से मैं गुजरता था उधर से काफिला जाता। 🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 कवि ईशान्त शर्मा (ईशु) [9:43 AM, 7/8/2019] Minaxi Thatur: ग़ज़ल बारिशों में सितम यूँ न ढाया करो, बेवजह रूठकर मत सताया करो। जान ले लो भले से हमारी सनम जान मुझको न तुम आज़माया करो। हम तलबगार तेरे पुराने सनम कुछ पुराने चलन भी निभाया करो। उलझनों में घिरी आज चाहत मेरी रूठकर उलझने मत बढ़ाया करो। छोड़कर राह में आज जाना नहीं, जा रहे हो अगर लौट आया करो। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ✍✍✍ [6:25 PM, 7/8/2019] +91 98975 48736: मैं तो यूही हन्स दी थी वो प्यार समझ बैठे, मेरी झुकी पलको को इक़रार समझ बैठे... मुझे सजने संवरने का बस शौक है थोड़ा सा, मुझे इश्क़ की खातिर वो तैयार समझ बैठे.... तन्हाई जगाती है, मुझे नींद नहीं आती, वो मेरी हालत को बीमार समझ बैठे... आँखो के इशारे से उन्हें पास बुलाया तो, मन ही मन जाने क्या सरकार समझ बैठे.... रश्मि प्रभाकर [7:00 PM, 7/8/2019] Minaxi Thatur: हास्य ग़ज़ल बारिशों में बलम तुम न जाया करो बाल धुल जायेंगे खौफ खाया करो डाई तुमने लगायी अभी कल ही थी रंग कच्चा न यूँ आज़माया करो। हो गये गाल काले सजन डाई से आइने को नहीं तुम सताया करो। बाल चाँदी से चमके चटक धूप में दाँतों के बिन भी तुम खिलखिलाया करो देख सावन को मन में हिलोरें उठें पोपले मुख से नगमें सुनाया करो। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ,🙏🙏🙏😄 [11:16 AM, 7/9/2019] Minaxi Thatur: ताटंक छंद जब सुप्त हृदय के आँगन में,तम ने डेरा डाला है, तब प्रभू की करुणा दृष्टि से,होता ज्ञान उजाला है। हो जीवन सफल सरस कोमल, मुझको ये वरदान मिले, भारत माता के चरणों में,हर जन्म मुझे स्थान मिले। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ✍✍✍✍9-7-19 [11:30 AM, 7/9/2019] +91 89419 12642: ताटंक में मुझ अनाड़ी का भी एक प्रयास - 🙏😊👇 ------------- जीवन रूपी संघर्षों ने, जब-जब मन को मारा है। तब-तब लिखने की अभिलाषा, मेरा बनी सहारा है। आभारी हूँ मैं अंतस में, उपजे प्रेरक भावों का। जिनसे जन्मी कविता ने ही, मुझको तम से तारा है। 🙏😊 - राजीव 'प्रखर' मुरादाबाद [12:40 PM, 7/9/2019] Hema: थक गया वह ढोते ढोते जब मृतप्राय बोझ, बैठ गया बीच राह में ही आखिर बैठना ही था, अब चला जो नहीं जाता। वह देख रहा है वहीं से दूसरे आने जाने वालों को। कुछ उसकी ही तरह हैं, थके,अवसादग्रस्त। बोझिल कदमों से घिसटते एक बोझ लादे काँधों पर। बोझ जो चिपटा हुआ है, हटाये नहीं हटता। पर वह देख रहा है, एक आध नहीं, बल्कि पूरी भीड़ की भीड़, हर्ष और उन्माद से भरी, मुस्कुराते मुखौटे पहनकर, लगी है दौड़ने...... अव्वल आने की होड़ में। वह सोच रहा है खिन्नमना ऐसा कैसे हो सकता है? उनके कंधों पर भी तो, लटका है आखिर उनके मृत अन्त:करण का शव। ✍हेमा तिवारी भट्ट ✍ [1:43 PM, 7/9/2019] Minaxi Thatur: अंग्रेज़ी की भी देखो अजब कहानी है बड़े-बड़ो को याद दिलाये बस नानी है रात किये थे याद , भूले अब संडे मंडे सुबह कापी में मिले बस गोल ही अंडे हाय नेचर को पढ़ डाला क्यों कर नटूरे मैडम ने धर डाले गाल पर दो भटूरे। गजब हुआ जब,मैडम ने कहा मुझको 'फूल' हमने भी शरमाते हुए कहा यू टू फूल.._. बोली मैडम,ओह!यू आर सो रिडिक्यूलस, ना मैडम जी! ना !आई एम तो हरिक्यूलस।। मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार मुरादाबाद ,✍✍😀🙏 [7:56 PM, 7/9/2019] Nirpesh: प्रस्तुत है एक कहानी; "मेरा इंतज़ार करना" पुरानी कहानी (ये कहानी मैने गांव में किसी से सुनी थी) बहुत पहले किसी गांव में एक किसान रहता था, उसके पास बहुत खेत थे इसीलिए गांव के लोग उन्हें चौधरी कहते थे। पुराने जमाने में लोग सुबह जल्दी उठ कर दिशा मैदान(शौच) आदि के लिए जंगल जाते थे। चौधरी साब भी रोज सुबह मुंह अंधेरे ही जंगल चले जाते थे। चौधरी साब ऐसे  भी घर से कुछ दूरी पर बनी बैठक पर ही रहते थे। उस दिन भी चौधरी साब सुबह चार बजे ही जंगल के लिए चल दिये। जुलाई का महीना शुरू हो चुका था एकाध बार हल्की बारिश भी हुई थी फिर भी सुबह चार बजे उषाकाल का हल्का उजाला दिखने लगता था। चौधरी साब ने जैसे ही गांव के बाहर बने कुएं को पार किया उन्हें एक बहुत सुंदर स्त्री गहनों से लदी हुई सारा श्रंगार किये कुएं की जगत (कुएं के ऊपर जो दीवार का घेरा होता है) पर बैठी दिखी। उसके गहने … [11:29 AM, 7/10/2019] Monika: नहीं बिल्कुल नहीं,इकदम नहीं है कि अब सांझा खुशी और ग़म नहीं है पड़ा है इस कदर जह्नों पे सूखा किसी के दिल की धरती नम नहीं है अजी...छोड़ो ये बातें पत्थरों की गुलों के रुख पे भी शबनम नहीं है मोहब्बत से भरे..सच्चे स्वरों की सुनाई देती अब सरगम नहीं है किताबे-दिल पढ़े "मासूम" अब क्यों कि ये रुज़गार का कॉलम नहीं है। "मोनिका "मासूम" [4:01 PM, 7/10/2019] Nirpesh: Story mirrer ne mujhe ye samman diya meri do kahaniyon:_1-भूल और 2- दास्ताँ-ए-दावत के लिए। प्रस्तुत है कहानी "दास्ताँ-ए-दावत" ठाकुर संग्राम सिंह बहुत उदार जमींदार थे। सारे गांव में उनको बहुत आदर सम्मान मिलता था।संग्राम सिंह जी भी सारे गांव के सुख दुख में विशेष ध्यान रखते। उसी गांव के बाहर कुछ दिन से एक गरीब परिवार आकर ,झोंपडी बना कर रह रहा है ,पता नहीं कहाँ से किन्तु बहुत दयनीय अवस्था मे थे सब। परिवार में एक बीमार आदमी रग्घू उसकी पत्नी रधिया , दो बेटियां छुटकी और झुमकी। बेचारी रधिया गांव के कूड़े से प्लास्टिक धातु ओर अन्य बेचने योग्य बस्तुएं बीन कर कबाड़ी को बेचती थी। बामुश्किल एक समय का बाजरा, जुआर अथवा संबई कोदो जुटा पाती और उसे उबालकर पीकर सभी परिवार सो जाता। बच्चों ने कभी पकवानों के नाम भी नहीं सुने थे ,चखने की तो बात ही स्वप्न थी। आज संग्राम सिंह जी के… [10:43 PM, 7/10/2019] Minaxi Thatur: कथा (जाम) "हमारी माँगे पूरी करो.....जो हमसे टकरायेगा...." नारों से माहौल काफी गर्म हो चला था।सड़क पर कुछ लोग धरना देकर बैठे थे ।दोनो ओर लम्बी -लम्बी कतारें लगी थी ।पुलिस वाले जाम खुलवाने की भरसक कोशिश कर रहे थे ।एक एम्बुलेंस भी जाम में फँसी हुयी थी ।एम्बुलेंस में बैठे लोगों के चेहरे जर्द पड़ चुके थे ।स्कूलों की वैन के बच्चे भी भूख और गर्मी से बिलबिला रहे थे ।मगर भीड़ की अगुवाई कर रहा विनीत किसी की नहीं सुन रहा था ।उसका स्वर और भी तेज हो गया था...हमारी माँग.....जो हमसे..." तभी उसके फोन की घंटी बजी..थोड़े झुंझलाते हुए फोन रिसीव किया,हैलो...!उधर से सुधा की घबराई हुयी आवाज़ थी ,"..सुनिए'..उसकी बात पूरी होने से पहले ही विनीत बोला,क्या है यार?सुबह बताया था न ..!कहीं बिज़ी हूँ।फिर क्यों डिस्टर्ब कर रही हो? बाद में बात करना।सुधा ने थोड़ा चिल्लाते हुए कहा ,अरे… [7:19 AM, 7/11/2019] +91 98975 48736: बारिश पर एक बाल गीत... .................... बादल☁ आये झूम के, आसमान को चूम के, गरज गरज कर बरस रहे हैं, लरज लरज कर बरस रहे हैं, चारों ओर भरा है🌧 पानी, गीली हो गयी मुन्नी👩 रानी, चुननू मुन्नू 👬बाहर निकले, खेल खेल में दोनों फ़िसले, चुननू ने एक नाव 🚣 बनायी, पानी पर उसने तैरायी, अंदर से माँ 👸दौड़ी आयी, चुननू मुन्नू पर चिल्लायी, क्यों इतना हुड्दन्ग मचाया, छप कर पानी फ़ैलाया गन्दे पानी में खेलोगे तो तुम बीमारी झेलोगे, अंदर चलो छोड़ शैतानी, बारिश रुक गयी बह गया पानी... रश्मि प्रभाकर... [7:37 PM, 7/11/2019] Priya Sharma: हो दिवाली,हो चाहे ईद मनाती है लड़किया बहुत अच्छे व्यजन ही बनाती है लड़किया। उत्सव हंसकर मनाती है धरती की ये परिया। माता पिता को हमेशा लुभाती है लड़किया। [2:18 PM, 7/12/2019] Monika: मधुरिम लम्हें चंद लिखे हैं दुख के लम्बे छंद लिखे हैं कुरुक्षेत्र से जीवन रण में अन्तर्मन के द्वंद लिखे हैं हाथ किसी के गरल हलाहल नाम कहीं मकरंद लिखे हैं ओढे मखमल कोय, किसी की चादर में पैबंद लिखे हैं इस ग़म ने खुशियों पर पहरे चाक और चौबंद लिखे हैं शायद उसने जानबूझ कर द्वार भाग्य के बंद लिखे हैं बंधे हुए शब्दों के भीतर भाव सभी स्वछंद लिखे हैं ढूँढो रे "मासूम" गमों में छिपे हुए आनंद लिखे हैं मोनिका "मासूम" मुरादाबाद [9:12 AM, 7/14/2019] Nirpesh: प्रेम पंथ है कितना पावन, इसकी महिमा कोन कहे। विश्वामित्र से महा योगी भी , प्रेम जाल से बच न सके।। इसकी महिमा बड़ी अनोखी, इससे है संसार सुखी। प्रेम न होता इस जग में तो, होती ना फिर ये सृष्टि।। प्रेम के पथ पर चलने वाले, प्रेमी कभी न हारेंगे। प्रेम से जग को जीतेंगे , वे सब को बस में कर लेंगे। । प्रेम की महिमा बड़ी निराली, ऋषी मुनि जन सब गाते हैं। प्रेम बिना यह दुनिया खाली, सबको यह सिखलाते हैं। प्रेम की शक्ति बड़ी निराली , इससे सब संसार डरे। आओ हम सब द्वेष भूलकर, एक दूजे से प्रेम करें।। [9:24 PM, 7/14/2019] Nirpesh: 👌👌 [9:26 PM, 7/14/2019] Nirpesh: 9997945063 ye pinkish kumar chauhan hain inhe add kar lena adhyapak hain kavitayen karte hain. [9:32 PM, 7/14/2019] Nirpesh: आयी नहा कर रस में और छंदों का श्रृंगार किया। ऐसी ही अलंकारिक तुकबन्दी को हमने कविता नाम दिया।। [8:18 AM, 7/15/2019] +91 99979 45063: भाई नृपेन्द्र जी क़ो group में जोड़ने के लिऐ हृदयतल से आभार .....🙏🏻 [8:19 AM, 7/15/2019] +91 99979 45063: ये सोचकर दिल मेरा , बहुत उदास होता है वैरी कोई गैर नहीं , अपना ही खास होता हैl चौहान मन की बात ,कभी कहना ना भूल से यहाँ गमगीन बातों का भी, बहुत हास होता है ll ✍ पिंकेश चौहान सहायक अध्यापक, बह्जोई मूलनिवासी ठाकुरद्वारा , मुरादाबाद [7:35 PM, 7/15/2019] +91 94104 99999: बरसात (मुक्तक) 💦💦⛈⛈💦💦⛈💦💦 ये काले बादलों से जैसे आती रात क्या कहने ये रिमझिम हौले बूंदों का मधुर आघात क्या कहने अहा ! क्या दृश्य है अद्भुत फुहारों के बरसने का ये मस्ती और किस मौसम में है बरसात क्या कहने 💦⛈💦⛈💦⛈💦⛈💦 [7:41 PM, 7/15/2019] Nirpesh: श्रमिक,, हमने जलते अंगारों से निज पांव को धोया है। अपनी हालत को देख देख पत्थर भी पिघल कर रोया है। हम श्रमिक हैं श्रम को हैं बने निज स्वेद के वस्त्र सदा पहने। हमने अपानी श्रम बूंदों से निज तन मन सदा भिगोया है। [11:47 AM, 7/16/2019] Monika: आदरणीय गुरु जी को प्रणाम🙏🏻🙏🏻 गुरु वसुधा,गुरु नील गगन अरु गुरु चंदा ,गुरु तारे गुरु दिनकर की प्रथम किरण जो दूर करे तम सारे गुरु अविचल गिरिराज हिमालय रिपुदल को ललकारे गुरु गंगा की धार ,जो भव सागर से पार उतारे गुरु तरुवर ,जो बाँट रहा निज संपद पर उपकारे गुरु तिनका, वो सुक्ष्म जो संकट में ये प्राण उबारे मेघों का अस्तित्व गुरु, क्षण भर को जो अवतारे पीर पराई देख स्वयं जो बूँद- बूँद बरसा- रे गुरू जलिध का गर्भ, छिपे हैं जिसमे माणिक सारे पाये क्या "मासूम" जो डरकर बैठा रहे किनारे मोनिका मासूम मुरादाबाद [3:14 PM, 7/16/2019] Nirpesh: गुरु पर्व पर मेरी एक रचना के साथ सभी को गुरुपूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई- "गुरु महिमा" 'गु'अंधेरा गहन है और 'रु' रौशनी ज्ञान की। गुरु साधारण नहीं एक मूर्ति है ज्ञान की। ज्यूँ बनाता मृतिका से सुंदर आकार, कुम्भकार । अंदर सहारा हाथ का ,और देता चोट बाहर। ऐंसे ही गुरु ज्ञान का प्रकाश भीतर में भरें और चोट अनुशासन की, भी बाहर से करें। जैसे अग्नि तपाकर कुंदन को असली रूप दे। ऐंसे ही गुरु ज्ञान ज्वाला में अज्ञान मेट दें। जो सिखाये जीवन पथ पर तनिक सा भी ज्ञान। उसको गुरु मानकर करना सदा  सम्मान। नृपेंद्र शर्मा "सागर" [3:21 PM, 7/16/2019] Nirpesh: गूगल ही गुरु हो गए, गूगल ही भये ज्ञान। गूगल जो भी कहत हैं, उसको सच्चा मान।। [4:32 PM, 7/16/2019] Monika: 😅😅👍🏻👍🏻 [4:33 PM, 7/16/2019] +91 89419 12642: कण कण में संसार के, बोलो बैठा कौन। ज्यों ही पूछा हो गया, गूगल झट से मौन। 😕😕😕 _ राजीव 'प्रखर' मुरादाबाद [8:13 PM, 7/16/2019] सर्वेन्द्र सिंह: गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभःकामनाएँ गुरु बिन ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना मान नहीं, गुरु से बढ़कर इस दुनियाँ होता कोई भगबान नहीं। ठाo सर्वेन्द्र सिंह चौहान मुरादाबाद [6:47 PM, 7/17/2019] Nirpesh: जीवन मेरा बना रहा क्यों एक पहेली। विरहिन तड़फ रही सदियों से बहुत अकेली। प्रेमाग्नि जल रही बुझाओ सावन आकर। प्रेम सुधा बरसाओ अब तो साजन आकर।। नृपेंद्र "सागर"

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